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टोल पर 3 मिनट के बाद टोल लागू करने का अधिकार नहीं-आरटीआई
आरटीआई आवेदन से पता चलता है कि टोल पर प्रतीक्षा समय 3 मिनट से अधिक नहीं होना चाहिए, लेकिन क्या यह संभव है? आइए इस रिपोर्ट में इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
लुधियाना के एक वकील द्वारा दायर एक आरटीआई आवेदन का जवाब हाल ही में विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर खूब वायरल हो रहा है। दरअसल वकील हरिओम जिंदल ने पिछले साल सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत एक आवेदन दायर किया था और यात्रियों की असुविधा के कारणों के बारे में पूछा तो उन्हें इस बाबत जो जानकारी मिली वह ध्यान देने योग्य है।
रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय राजमार्गों पर चलने के दौरान होने वाली असुविधाओं और टोल प्लाजा पर रूकने के अधिकतम समयसीमा को लेकर सवाल किया तो उन्हें जवाब मिला कि किसी भी टोल बूथ पर प्रतीक्षा समय 3 मिनट से अधिक नहीं होना चाहिए। आप यह जवाब सुनकर भले चौंक जाएं और कहें कि यह कैसे संभव है, लेकिन सत्य तो यही है।
बताया जा रहा है कि इस सवाल की शुरूआत 2015 में अलग-अलग स्थानों पर से शुरू हुआ। जिंदल ने साल 2015 में, नासिक और सातारा के बीच राजमार्ग पर स्थित एक जिले के कलेक्टर ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) से संपर्क किया और उनसे कहा जवाब मांगा।
इस मामले में जब आरटीआई दाखिल हुई तो जिला प्रशासन ने एनएएचआई द्वारा बताए गए नियमों का हवाला दिया था। नियम के अनुसार और जैसा कि आरटीआई के प्रतिलिपि में बताया गया है, अगर टोल बूथ में तीन मिनट से अधिक समय तक प्रतीक्षा की जाती है, तो टोल ऑपरेटर को उपयोगकर्ताओं पर टोल लागू करने का अधिकार नहीं होता है।
चूंकि टोल टैक्स नहीं है, और यह एक सेवा शुल्क है, जिसके लिए उपभोक्ता को बदले में एक सेवा(सड़क का उपयोग) मिलनी चाहिए। जिंदल ने उपभोक्ता अदालत के अधिकार क्षेत्र में एनएचएआई द्वारा प्रदान की जाने वाली सार्वजनिक सेवाओं को लाने के लिए लुधियाना की उपभोक्ता अदालत से संपर्क किया। जिंदल के तर्क को समझ में आया, और इसके परिणामस्वरूप एक ऐतिहासिक निर्णय हुआ।
हालांकि टोल बूथ में समय लेने वाली प्रक्रिया के खिलाफ यह जानकारी बेहद चौकाने वाली है लेकिन अगर व्यवाहिरक रूप से देखा जाए तो क्या यह लागू हो सकता है? तो इसका जवाब शायद नहीं ही होगा। क्योंकि भारत में ज्यदातार सड़कों की वह क्षमता ही नहीं है, जो तीन मिनट के भीतर वाहनों का निष्पादन कर सके।
इसके लिए तो सबसे पहले सड़कों की चौड़ाई को ही बढ़ाने की जरूरत है। क्योंकि ज्यादातर वाहोंन को इससे ज्यादा समय लग जाता है। इसके पीछे ट्रैफिक से लेकर कई वजहें हो सकती हैं। यहीं नहीं कुछ भारतीय लीडर भी होंते हैं जो टोलकर्मी से बहस ही कर लेते हैं।
कहने का अर्थ है यह नियम व्यवहारिक नहीं लगता है। जब तक मूलभूत संसाधन पूरे न कर लिए जाए। इस पूरे मामले का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है कि अघोषित तौर पर सरकारों ने खुद इस नियम को पहले ही खारिज कर दिया है। इसलिए इसमें बहस आदि की गुंजाइश नहीं बचती है।
DriveSpark की राय
यह बहुत बड़ा मुद्दा है और इसे एक बार में सुलझाया नहीं जा सकता है। वक्त का तकाजा यह कहता है इसे लेकर अब तमाम टोल कम्पनियों और सरकारों से सवाल जवाब किया जाए। हालांकि जीएसटी लागू होंने के बाद टोल प्लाजा पर वसूली बंद हो गई है।