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क्या आपने सोचा है कि ट्रेन में क्यों नहीं मिलती है मनचाही सीट? भौतिकी का यह कारण जान हो जाएंगे हैरान
ट्रेनों में यात्रा करना आज के समय में सबसे किफायती पब्लिक ट्रांसपोर्ट में से एक है। लंबी दूरी की यात्रा करने के लिए ट्रेनों का इस्तेमाल बहुत आम है। ये बात तो साफ है कि किसी भी ट्रेन में सफर करने के लिए आपको टिकट खरीदनी होती है। किसी भी ट्रेन में IRCTC से आपने कभी न कभी कोई टिकट बुक की होगी। अगर नहीं भी की है तो किसी और से करवाई होगी।
जब आपको IRCTC पर किसी ट्रेन की टिकट बुक करनी होती है, तो सबसे पहले आपको IRCTC की वेबसाइट पर लॉग-इन करना होता है। IRCTC वेबसाइट में सफलतापूर्वक लॉग-इन करने के बाद आप यह प्रार्थना करते हैं कि आपकी टिकट सफलतापूर्वक बुक हो जाए और आपको आपकी पसंदीदा विंडो सीट मिल जाए।
ट्रेन का बुकिंग विंडो खोलने पर आपको पता चलता है कि ट्रेन में लगभग 400 सीटें खाल हैं। आप अपनी किस्मत को धन्यवाद करते हैं और सोचते हैं कि आप विंडो सीट को आसानी से बुक कर सकते हैं। अंत में जब आप टिकट बुक कर लेते हैं तो विंडो सीट चुनने के बाद भी आपको विंडो सीट नहीं मिलती है।
इसके बाद आप देखते हैं कि अभी भी 399 सीटें खाली हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है, कि आप जो सीट चाहते हैं, भारतीय रेलवे द्वारा वो सीट नहीं मिलती है? आखिर इसके पीछे का कारण क्या है? तो चलिए आज यहां हम आपको यही बताने जा रहे हैं।
कल्पना कीजिए कि S1, S2 S3 से लेकर S10 नंबर वाली ट्रेन में स्लीपर क्लास के कोच हैं और हर कोच में 72 सीटें हैं। इसलिए जब कोई पहली बार टिकट बुक करता है, तो रेलवे का सॉफ्टवेयर मध्य कोच में एक सीट जैसे S5 कोच में बीच की सीट जो कि 30 से 40 के बीच और ज्यादातर लोवर बर्थ असाइन करेगा।
ऐसा इसलिए है क्योंकि भारतीय रेलवे का यह सॉफ्टवेयर ऊपरी बर्थ की तुलना में निचली बर्थों को पहले भरेगा ताकि गुरुत्वाकर्षण के निम्न केंद्र को प्राप्त किया जा सके। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एक ट्रेन औसतन लगभग 70 किमी/घंटा की रफ्तार पर चलती है।
अब ऐसे में मान लीजिए कि कोच-S1, S2, S3 भरे हुए हैं और S5, S6 खाली हैं और अन्य आंशिक रूप से भरे हुए हैं, तो ऐसी स्थिति में जब ट्रेन मुड़ती है, तो कुछ कोच अधिकतम सेंट्रीफ्यूगल फोर्स का सामना करते हैं और कुछ न्यूनतम फोर्स का सामना करते हैं। इससे ट्रेन के पटरी से उतरने का खतरा बढ़ जाता है।
जब ब्रेक लगाए जाते हैं तो इन डिब्बों में भारी वजन अंतर के कारण अलग-अलग ब्रेकिंग बल काम करते हैं, जिससे ट्रेन की स्थिरता में व्यवधान पैदा होता है। इसके अलावा सीटें आवंटित करते समय प्रोफाइलिंग भी एक बड़ा कारण है। गर्भवती महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों को निचली बर्थ सीटें दी जाती हैं।
भारतीय रेल, यह भारत में यातायात का एक बहुत बेहतर और सस्ता साधन है। इसे काफी हद तक सुरक्षित भी कहा जा सकता है। हांलाकि कुछ कारणों की वजह से कभी-कभी रेल हादसे भी हो जाते हैं, लेकिन इन्हें रोकने की दिशा में निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।
अपनी क्लास के बच्चों को ये समझाते हुए सलिल आज रेलगाड़ी के बारे में बता रहा है। सलिल एक स्कूल में अध्यापक के रूप में काम करता है। वह क्लास में बच्चों को नई चीजें बताता रहता है। आज क्लास में किसी बच्चे ने रेलगाड़ी के बारे में पूछा था और वह उसी का जवाब दे रहा था।
अभी वह बच्चों को रेलगाड़ी के बारे में बता रही रहा था, कि क्लास के बीच में एक बच्चे ने हाथ खड़ा कर दिया। सलिल समझ गया कि उसके मन में कोई सवाल है। उसने खुद को रोकते हुए उस बच्चे से कहा, बताओ निखिल क्या पूछना चाहते हो?
उस बच्चे का नाम निखिल था। उसने अपना सिर खुजलाते हुए सलिल से कहा कि सर, रेलगाड़ियों के इतने एक्सीडेंट होते हैं तो ये भी तो हो सकता है कि रेलगाड़ी का ड्राइवर सो जाता हो और एक्सीडेंट हो जाता हो।
उस बच्चे का नाम निखिल था। उसने अपना सिर खुजलाते हुए सलिल से कहा कि सर, रेलगाड़ियों के इतने एक्सीडेंट होते हैं तो ये भी तो हो सकता है कि रेलगाड़ी का ड्राइवर सो जाता हो और एक्सीडेंट हो जाता हो।
निखिल की बात सुनकर क्लास के सारे बच्चे जोर से हंसने लगे। लेकिन बच्चों को चुप कराते हुए सलिल ने कहा कि तुमने अच्छा सवाल पूछा है। हो सकता है कि ट्रेन के ड्राइवर को नींद आ जाए और वो सो जाए, आखिर वो भी इंसान ही है।
मैं ये तो नहीं बता सकता है कि ट्रेन चलाते हुए ड्राइवर सोते हैं या नहीं, लेकिन ये जरूर बता सकता हूं कि अगर ट्रेन चलाते हुए ड्राइवर सो जाए तो क्या होगा। इतने में क्लास के एक बच्चे की आवाज आई कि अगर ड्राइवर सो जाएगा तो एक्सीडेंट हो जाएगा।
मैं ये तो नहीं बता सकता है कि ट्रेन चलाते हुए ड्राइवर सोते हैं या नहीं, लेकिन ये जरूर बता सकता हूं कि अगर ट्रेन चलाते हुए ड्राइवर सो जाए तो क्या होगा। इतने में क्लास के एक बच्चे की आवाज आई कि अगर ड्राइवर सो जाएगा तो एक्सीडेंट हो जाएगा।