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क्या होता है जब हवाई जहाज पर गिरती है बिजली, जानिए यहां
ऐसे मौसम में जब बारिश हो रही हो और आसमान में बिजली चमक रही हो, तो कोई भी अपने घर से बाहर नहीं निकलना चाहता है। कड़कती बिजली के दौरान वाहन चलाने में भी खतरा होता है। तो जरा सोचिए कि आसमान में उड़ने वाले एयरोप्लेन को आसमानी बिजली से कितना खतरा होता है।
क्या कभी आपने इस बारे में सोचा है कि अगर एयरोप्लेन पर आसमानी बिजली गिर जाए तो उसका क्या होगा। अगर नहीं सोचा तो हम आपको बताते है कि एयरोप्लेन पर बिजली गिरने से क्या होता है।
लेकिन उसके पहले ये जान लीजिए कि आसमानी बिजली प्रकृति की अनेक शक्तियों में से एक है। आपको बता दें कि आसमान से गिरने वाली बिजली में एक अरब वोल्ट तक ऊर्जा होती है। इतनी ऊर्जा एक 60 वॉट के बल्ब को 6 माह तक लगातार जलाने के लिए काफी होती है।
इतना ही नहीं आसमानी बिजली सूर्य की सतह से 5 गुना ज्यादा गर्म होती है। इसलिए जब बिजली अपने आस-पास मौजूद हवा से ध्वनि से भी तेज रफ्तार से टकराती है तो हवा से धमाकों जैसी आवाज आने लगती है। इसके साथ ही अगर आप इसे बहुत करीब से देखते है तो यह कुछ समय के लिए आंखों को लगभग अंधा बना देती है।
अब बात करते है एयरोप्लेन की, तो आप कहेंगे कि जब आसमानी बिजली इतनी खतरनाक होती है तो एयरोप्लेन को बहुत नुकसान होता होगा। लेकिन सच तो यह है कि एयरोप्लेन को कोई बड़ा नुकसान नहीं होता है।
जीहां, चौंकने की जरूरत नहीं है। एयरोप्लेन आसानी से आसमानी बिजली को सह सकता है और उसे कोई बड़ा नुकसान नहीं होता है। बता दें कि एयरोप्लेन में एक खास वेदर रडार सिस्टम होता है, जो एयरोप्लेन के पायलट को इस बात की जानकारी देता है कि कोई तूफान कितनी दूर है।
अगर एयरोप्लेन किसी तूफान के केंद्र के 20 मील से कम दूरी पर होता है तो यह रडार पायलट को जानकारी दे देता है। इस जानकारी को पुख्ता कर पायलट एयरोप्लेन को तूफान के बगल से निकाल लेते है। लेकिन सवाल ये है कि अगर बिजली से एयरोप्लेन को कुछ नहीं होता है तो फिर प्लेन को तूफान के बीच से क्यों नहीं निकाला जा सकता है?
ऐसा इसलिए क्योंकि तूफान के बीच में होने वाले टर्बुलेंस से एयरोप्लेन को ज्यादा नुकसान हो सकता है। तेज हवाओं की वजह से एयरोप्लेन का नियंत्रण पायलट के हाथों से छूट सकता है और एयरोप्लेन क्रैश हो सकता है।
अब सवाल ये है कि अगर एयरोप्लेन तूफान से गुजरता है तो बिजली से उसे नुकसान क्यों नहीं होता है। तो आपको बता दें कि एक एयरोप्लेन को हवा में उड़ाने से पहले इसके कई टेस्ट किये जाते है, जिनमें से एक हाई वोल्टेज टेस्ट भी होता है।
एयरोप्लेन की सतह पर एक तरह के कम्पोजिट मटेरियल का इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी वजह से बिजली एयरोप्लेन की सजह के ऊपर से गुजर जाती है। बिजली एयरोप्लेन के ऊपर से गुजरती है लेकिन इसके अंदर के उपकरणों को भी ज्यादा नुकसान नहीं होता है।
ऐसा इसलिए क्योंकि एयरोप्लेन सिर्फ कम्पोजिटिव मटेरियल से ही कवर नहीं होता है, बल्कि इसकी सतह से अंदर एक खास तरह के कन्डक्टेड जाली की लेयर होती है, जो कॉपर फॉइल की बनी होती है। यह लेयर एयरोप्लेन को एक इलेक्ट्रिक कंडक्टर की तरह घेरे रहती है।
इतना ही नहीं एयरोप्लेन के अंदर बिछाए गए तारों और उपकरणों को भी इस कॉपर फॉइल से कवर किया जाता है। इसके अलावा एयरोप्लेन के फ्यूल टैंक में भी न्यूट्रल गैस भरी जाती है, जिसकी वजह से ईंधन में भी आग नहीं लगती है।
साथ ही एयरोप्लेन के पंखों पर खास स्टैटिक इल्युमिनेटर लगे होते है, जो बिजली के स्टैटिक चार्ज को हवा में पीछे छोड़ देते है। इन स्टैटिक इल्युमिनेटर की वजह से ही एयरोप्लेन न्यूट्रल चार्ज रहता है और बिजली को अपनी ओर आकर्षित नहीं करता है।