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ट्रेन में क्यों होते हैं नीले, लाल और हरे रंग के डिब्बे? हर रंग का होता है अलग मतलब
भारतीय रेलवे एशिया में सबसे बड़ा और पूरी दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। देश में रेल नेटवर्क की कुल लंबाई 1,15,000 किलोमीटर है और हर दिन 12,617 पैसेंजर ट्रेनें चलती हैं जिसमें रोजाना 2.3 करोड़ लोग सफर करते हैं। आपने भी कभी न कभी ट्रेन में सफर किया ही होगा। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ट्रेन के डिब्बों का रंग अलग-अलग क्यों होता है?
भारत में ट्रेन के डिब्बे तीन रंग के होते हैं। आमतौर पर ट्रेनों में नीले, लाल और हरे रंग के डिब्बे देखे जाते हैं। तीनों रंग के डिब्बे अलग-अलग संकेत देते हैं। आइये जानते हैं इन डिब्बों के रंग का क्या महत्व है...
नीले रंग के कोच
आपने ध्यान दिया होगा कि अधिकांश रेलवे कोच नीले रंग के होते हैं। ये कोच आईसीएफ या एकीकृत कोच होते हैं जिनकी रफ्तार 70-140 किलोमीटर प्रति घंटा के बीच होती है। ये कोच मेल एक्सप्रेस या सुपरफास्ट ट्रेनों में मिलती हैं। ये लोहे से बने होते हैं और एयर ब्रेक से लैस होते हैं।
लाल रंग के डिब्बे का मतलब
नीले रंग के बाद ट्रेनों में सबसे ज्यादा लाल रंग के डिब्बों को देखा जाता है। वर्ष 2000 में ये कोच जर्मनी से मंगाए जाते थे। इन ट्रेनों को 'लिंक हॉफमैन बुश' कहा जाता है क्योंकि पहले इन कोचों का निर्माण यही कंपनी करती थी। हालांकि, अब इन डिब्बों को भारत में ही कपूरथला (पंजाब) के प्लांट में बनाया जा रहा है।
इन डिब्बों की सबसे खास बात यह है कि इन्हें स्टील से नहीं बल्कि एल्युमीनियम से बनाया जाया है, इसलिए ये स्टील के डिब्बों से हल्के भी होते हैं। हल्का होने के वजह से इनकी रफ्तार 200 किलोमीटर प्रति घंटे तक होती है। ये डिब्बे डिस्क ब्रेक से लैस होते हैं। लाल डिब्बों का उपयोग मुख्य रूप से राजधानी और शताब्दी जैसे ट्रेनों में किया जाता है ताकि उन्हें अधिक स्पीड में चलाया जा सके।
हरे रंग के डिब्बे
हरे रंग के डिब्बे अक्सर गरीब रथ जैसे ट्रेनों में इस्तेमाल किए जाते हैं। पहले नैरो-गेज पटरियों में चलने वाली ट्रेनों में हरे रंग के डिब्बों का इस्तेमाल किया जाता था। भारत में अब लगभग सभी रूट पर नैरो गेज को बंद कर दिया गया है। मीटर गेज पर कुछ ट्रेनों के डिब्बे हरे और भूरे रंग में होते हैं।
धारियों का क्या है मतलब?
ट्रेन के डिब्बों में अलग-अलग रंग की धारियां भी होती हैं जो उसके प्रकार का संकेत देती हैं। कुछ कोचों में अंतिम खिड़की के ऊपर कई तरह के पेंट किए होते हैं जो उन्हें दूसरों से अलग करता है। उदाहरण के तौर पर, यदि नीले रंग के डिब्बे की खिड़कियों पर सफेद रंग का पेंट है तो इसका मतलब वह कोच अनारक्षित सकेंड क्लास की श्रेणी का कोच है।
वहीं अगर ग्रे रंग के कोच में हरे रंग की खिड़कियां है तो समझ जाएं कि वह कोच केवल महिलाओं के लिए आरक्षित है। इसके विपरीत, अगर ग्रे रंग के डिब्बों पर लाल धारियां दिखें तो ये ईएमयू/एमईएमयू ट्रेनों में प्रथम श्रेणी के केबिनों को दर्शाती हैं। मुंबई लोकल ट्रेनों के लिए पश्चिम रेलवे इन दोनों तरह की धारियों का इस्तेमाल करता है।