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इलेक्ट्रिक वाहन 2030 तक पूर्णरूप से नहीं होंगे लागू , लग सकता है लंबा वक्त
भारत में ऑटो उद्योग तेजी से इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ बढ़ रहा है। सरकार और ऑटो निर्माता इसके लिए एक साथ मिलकर काम कर रहे है। इलेक्ट्रिक वाहनों को 2030 तक भारत में लागू करने सरकार का लक्ष्य है।
इसके लिए भारत सरकार ने कई बड़े कदम भी उठाए है। इलेक्ट्रिक वाहनों के लोन पर 1.5 लाख रुपयें की छूट या फिर जीएसटी दरों में की गई भारी कटौती ताजा उदहारण है। भारत सरकार देश में इलेक्ट्रिक मोवलिटी को लेकर बहुत ही आक्रामक तरीके से कार्य कर रही है।
2030 तक सरकार का लक्ष्य भारत को 100 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहन राष्ट्र बनाना है। साथ ही यह भी प्रस्तावित है कि 2025 के बाद देश में बेचे जाने वाले 150 सीसी के क्षमता के दोपहिया और तीन पहिया वाहन इलेक्ट्रिक वाहन होने चाहिए।
लेकिन इस पर बात करते हुए टीईआरआई के प्रमुख अजय माथुर ने कहा कि भारत में ई वाहनों को वास्तविकता बनाने से पहले ग्राहकों में स्वीकार्यता का भी ध्यान देना होगा। "यह एक उपभोक्ता आधारित बाजार है, इसलिए उपभोक्ता स्वीकार्यता और वांछनीयता प्रमुख कारक हैं। हम अभी तक वहां नहीं हैं।
"वायु प्रदूषण को कम करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहन ईंधन आधारित ऑटोमोबाइल के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है, लेकिन अगले 10 वर्षों में ई-वाहनों पर स्विच करने के लिए सरकार का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल है। क्योंकि उपभोक्ताओं को बदलाव को स्वीकार करने के लिए समय की आवश्यकता होगी।"
"हमें पुराने वाहनों की स्क्रैपिंग, जीएसटी, व्यापार मॉडल को कम कर ई वाहनों से स्थानंतरित करने में आने वाले बाधाओं से निपटने की योजना पर काम करना होगा। हालांकि अभी यह भी साफ नहीं किया गया है कि 2023-25 के इस लक्ष्य का आधार क्या है।
"बाजार में पहले उपभोक्ता वांछनीयता और स्वीकार्यता का निर्माण करना चाहिए, जो होता दिख नहीं रहा है। वहीं अजय माथुर इलेक्ट्रिक वाहनों की प्रंशसा की है। उन्होंने कहा कि शहर में प्रदूषण को कम करने के लिए इनका उपयोग अनिवार्य है। क्योंकि यह डीजल और पेट्रोल वाले वाहनों की तुलना में बेहतर है।"
टीईआरआई के प्रमुख ने यह भी कहा कि "भारत में इसे लोकप्रिय बनाने के लिए सबसे पहले इस्तेमाल सार्वजनिक वाहनों के रूप में करना चाहिए। बस और टैक्सी जैसे कमर्शियल वाहन को ई - वाहनों में सबसे पहले रूपांतरित करना चाहिए। क्योंकि इनकी वजह से ही सबसे अधिक प्रदूषण का उत्पादन होता है। उन्होंने ई-वाहनों के आस-पास के मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की, जिसमें महंगी खरीद दर, चार्जिंग स्टेशन की उपलब्धता, परिचित और उपयोग में लोगों की सुविधा शामिल है।"
साथ ही उन्होंने इलेक्ट्रिक वाहनों की महंगी खरीद दर, चार्जिंग स्टेशन की उपलब्धता और अन्य मुद्दों पर बात की है। अजय माथुर कहत है कि पिछले वर्ष भी 8 इलेक्ट्रिक बसों के लिए टेंडर निकाला गया था। लेकिन एकमुश्त खरीद की दर बहुत कम थी। कुछ लोगों ने इस खरीदा, वहीं कुछ ने पट्टे पर लिया था।
जाहिर माथुर इन सब वजहों का जिक्र कर इलेक्ट्रिक वाहन की उपलब्धता पर सवाल उठा रहे थे। उन्होंने यह भी कहा कि "इसकी कीमत के साथ रेंज भी बिक्री में बड़ा कारक हो सकता है। लोगों के अंदर यह भी डर है कि आउट ऑफ चार्ज होने के बाद वो कहां जाएंगे। इसके लिए भी हमें तैयार रहना होगा और लोगों के बीच जागरूकता लानी होगी।"
चीन में देखा जाएं तो सभी नई बसें और दोपहिया वाहन इलेक्ट्रिक है और लोग आसानी से उसका इस्तेमाल भी करते है। इसलिए सरकार पहले ई-चार्जिंग के बुनियादी ढांचे का वैकल्पिक व्यापार मॉडल पेश करना चाहिए, जिससे ईवीएस में बदलाव के लिए हम पूरी तरह से तैयार हो।