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इस व्यक्ति ने 200 रुपये के चालान का केस जीतने के लिए खर्च किए 10,000 रुपये, जानें पूरा मामला
पिछले कुछ सालों से पहले की तुलना में यातायात पुलिस विभाग पूरे भारत में बहुत सख्त हो गया है। जिसके चलते पहले से ज्यादा संख्या में चालान काटे जा रहे हैं। हालांकि कई मामले ऐसे भी सामने आए हैं, जिनमें पुलिस कुछ गलत चालान जारी कर देती है और ऐसे में किसी का भी नुकसान हो जाता है।
आमतौर पर लोगों का जब चालान कटता है तो वे अपने चालान का भुगतान करते हैं, लेकिन पुणे के इस व्यवसायी के मामले में ऐसा नहीं था। इस व्यवसायी ने अपने 200 रुपये के जुर्माने के लिए लड़ाई लड़ी, जिसे जनवरी में इस साल की शुरुआत में पुलिस ने जारी किया था।
जानकारी के अनुसार पुणे के रहने वाले बिनॉय गोपालन को जनवरी 2021 में पिंपरी-चिंचवड ट्रैफिक पुलिस से 200 रुपये का चालान जारी किया था। बिनॉय अधिकृत पार्किंग क्षेत्र में अपनी गाड़ी के साथ खड़े थे, लेकिन पुलिस ने उन पर 200 रुपये का चालान जारी कर दिया।
ऐसा एक यातायात सिग्नल के चलते हुआ, जिसकी वजह से भ्रम की स्थिति पैदा हुई थी। गोपालन के अलावा उस दिन कई अन्य लोगों को भी चालान जारी किया गया था। कई अन्य लोगों ने जुर्माना प्राप्त किया और मौके पर ही उसका भुगतान कर दिया।
लेकिन बिनॉय गोपालन ने ऐसा नहीं किया। चालान जारी होने के बाद वे सीधे ट्रैफिक पुलिस कार्यालय जा पहुंचे और कई ट्रैफिक पुलिस से मिले और अधिकारियों के पास अपने कई आवेदन भी जमा किए। इसके बाद उन्होंने यातायात पुलिस आयुक्त के खिलाफ एक मामला दर्ज कराया।
इस मामले की असंख्य सुनवाई के बाद, उन्होंने अधिकारियों को अपनी गलतियों को स्वीकार करने और उनके खिलाफ जारी किए गए ऑनलाइन चालान को वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया। इस मामले को लेकर बिनॉय ने मीडिया को जानकारी दी है।
उन्होंने बताया कि "प्राधिकरण ने गफ़्फ़ में प्रवेश कर लिया, लेकिन ऑनलाइन सिस्टम के रिकॉर्ड से इस चालान को मिटाने के लिए तैयार नहीं हो रहा था, यह दावा करते हुए कि ऑनलाइन चालान आगे चलकर मेरे लिए ज्यादा मुसीबतें बढ़ा सकता है, मैंने इसे खत्म कराने की ठान ली।"
उन्होंने आगे बताया कि "पुलिस विभाग ने मुझे सुझाव दिया कि मैं या तो 200 रुपये का भुगतान कर दूं या फिर अदालत के चक्कर लगाता रहता हूं और अदालत की फीस पर लाखों खर्च करता रहूं। लेकिन मैंने फिर अपनी बात पर अड़े रहने का फैसला किया।"
बिनॉय कहते हैं कि "मैंने मुख्यालय के कई चक्कर काटे और इसके साथ ही लगभग 10,000 रुपये खर्च कर दिए। पुलिस के इस आकस्मिक दृष्टिकोण ने मुझे आहत किया और मैं उचित समाधान चाहता था। अंत में बीते शुक्रवार को वो मेरे दावे पर सहमत हुए और ऑनलाइन चालान रद्द कर दिया।"