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भारत से जल्द शुरू होगा ग्रीन हाइड्रोजन का एक्सपोर्ट, दुनिया भर में है भारी डिमांड
पेट्रोल और डीजल वाहनों से बढ़ रहे प्रदूषण को देखते हुए अब कई देश इन वाहनों पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी में हैं। यूरोपीय संघ ने तो 2035 से पेट्रोल और डीजल से चलने वाले वाहनों की बिक्री पर रोक लगाने का नियम भी लागू कर दिया है। ऐसे में पूरी दुनिया पेट्रोल और डीजल जैसे जीवाश्म ईंधन का विकल्प तलाश रही है। हालांकि, दुनिया को स्वच्छ ईंधन का विकल्प देने में भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हाल ही में भारत सरकार देश में बन रहे ग्रीन हाइड्रोजन को एक्सपोर्ट करने की तैयारी कर रही है।
रॉयटर्स के अनुसार, दक्षिण एशियाई देश भारत में बनाने वाले ग्रीन हाइड्रोजन के सबसे बड़े ग्राहक बन सकते हैं। इसके लिए भारत सरकार के उच्चाधिकारी ग्रीन हाइड्रोजन के निर्यात के लिए दक्षिण एशियाई देशों की सरकारों के साथ शुरुआती बातचीत कर रहे हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, विदेश मंत्रालय के एक अतिरिक्त सचिव प्रभात कुमार ने नई दिल्ली में एक उद्योग कार्यक्रम में कहा, "हम भविष्य में हरित हाइड्रोजन को ऊर्जा का मुख्य स्रोत बनाने की स्थिति में हैं।" कुमार ने कहा कि भारत में पर्याप्त धूप है जिससे देश को ग्रीन हाइड्रोजन को तैयार करने में पर्याप्त ऊर्जा मिल सकती है। हालांकि उन्होंने निर्यात के लिए कोई समय सीमा स्पष्ट नहीं की।
क्या है ग्रीन हाइड्रोजन?
दरअसल, पानी को इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से ऑक्सीजन और हाइड्रोजन में बदलने में भारी मात्रा में बिजली की खपत होती है। ग्रीन हाइड्रोजन को कोयले से तैयार होने वाली बिजली के बजाय सौर और पवन ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा श्रोतों से मिलने वाली बिजली से तैयार किया जाता है। ग्रीन हाइड्रोजन को तैयार करने में कार्बन उत्सर्जन शून्य होता है इसलिए इस प्रक्रिया से तैयार हाइड्रोजन को हरित या ग्रीन हाइड्रोजन कहा जाता है। आमतौर पर ग्रीन हाइड्रोजन का ज्यादातर इस्तेमाल वाहनों और रसायन उद्योग में हो रहा है।
केंद्र सरकार ने इस साल फरवरी में ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया नीति को अधिसूचित किया था, जिसका उद्देश्य 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन के घरेलू उत्पादन को 5 मिलियन टन तक बढ़ाना और भारत को स्वच्छ ईंधन के लिए निर्यात केंद्र बनाना है। इस नीति के तहत हाइड्रोजन का उत्पादन करने वाले संयंत्रों को बिजली देने वाले ग्रीन एनर्जी प्लांट्स पर ऊर्जा ट्रांसमिशन पर लगने वाला टैक्स 25 साल तक नहीं लिया जाएगा। हालांकि, इसका फायदा केवल ऐसे ग्रीन एनर्जी प्लांट्स को दिया जाएगा जो अपना संचालन 2025 के पहले शुरू करेंगे।
भारत में बनाने वाले ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग देश की इस्पात, रिफाइनरी, और उर्वरक कंपनियां भी करेंगी। जिससे कोयले से तैयार होने वाली बिजली की खपत में भारी कमी आएगी। सरकार ने उद्योग द्वारा ग्रीन हाइड्रोजन की खरीद की मात्रा को भी तय किया है। ये क्षेत्र अपनी कुल आवश्यकता का 15-20 प्रतिशत ग्रीन हाइड्रोजन खरीद सकते हैं।