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हर महीने बिक रही है 30 हजार से ज्यादा ई-रिक्शा, नहीं पड़ा मंदी का असर
एक रिपोर्ट के अनुसार एक तरफ जहां ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी का दौर चल रहा है वहीं ई-रिक्शा की बिक्री में 16 प्रतिशत की भारी वृद्धि देखने को मिली रही है।
छोटे शहरों में ई-रिक्शा यातायात का एक सस्ता साधन बनता जा रहा है। ई-रिक्शा की बिक्री की बात करें तो अभी हर साल 4 लाख ई-रिक्शा बेचे जा रहे हैं, वहीं 2025 से बाजार में प्रति वर्ष 10 लाख ई-रिक्शा के बेचे जाने का अनुमान लगाया जा रहा है।
इंधन से चलने वाले रिक्शा से तुलना की जाए तो ई-रिक्शा की लागत और इसे ऑपरेट करने का खर्च काफी कम है, यही कारण है की मंदी के दौर में भी इसकी मांग कोई असर नहीं पड़ा है।
इन दिनों इलेक्ट्रिक दोपहीया वाहन की भी मांग गिरी है। इलेक्ट्रिक वाहनों की सेल में 83 प्रतिशत हिस्सेदारी ई-रिक्शा की है, वहीं इलेक्ट्रिक दोपहीया की मांग 11 प्रतिशत है। वहीं, इलेक्ट्रिक कार केवल 1 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते हैं।
भारतीय बाजार में लगभग 10 लाख ई-रिक्शा यातायात का हिस्सा हैं। हर महीने लगभग 30-32 हजार ई-रिक्शा बेचे जा रहे हैं। बता दें कि 2025 आने तक ई-वाहनों में 70 प्रतिशत हिस्सेदारी लिथियम-आयन बैटरी से चलने वाले ई-वाहनों की हो जाएगी।
महिंद्रा एंड महिंद्रा के एमडी, पवन गोयनका का कहना है कि पहले से ही ऑटो सेक्टर में ई-रिक्शा की काफी बड़ी पैठ हो चुकि है और यह कहा जा सकता है कि 2023 तक 50 प्रतिशत ऑटो रिक्शा इलेक्ट्रिक होंगे। आने वाले दिनों में लेड-एसिड के जगह लिथियम बैटरी का ज्यादा इस्तेमाल होगा। फिलहाल महिंद्रा के ई-ऑटो और ई-रिक्शा, दोनों ही प्रोडक्ट बाजार में मौजूद हैं।
महिंद्रा ने ई-वाहन के विकास और प्रौद्योगिकी में 1,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है और अगले 3 वर्षों के लिए 1,000 करोड़ रुपये का निवेश कर सकती है।
देखा जाए तो देश के पूर्वी और उत्तरी राज्यों में ई-रिक्शा काफी पहले से ही मौजूद हैं। रिक्शा चालकों ने किफायती होने के चलते ई-रिक्शा को अपना रहे हैं।
पहले अधिकतर ई-वाहनों का चीन से आयात किया जाता था, लेकिन अब भारतीय वाहन निर्माता भी ई-वाहनों के निर्मान में अहम भूमिका निभा रहे हैं। महिंद्रा, काइनेटिक, लोहिया ऑटो जैसे भारतीय कंपनियों की ई-वाहन निर्मान में अहम हिस्सेदारी है।
हालांकि ई-वाहन किफायती होते हैं, लेकिन वर्तमान में ई-ऑटो और ई-रिक्शा कुछ बाधाओं का सामना कर रहे हैं। कुछ राज्यों में ई-ऑटो के पंजीकरण और फाइनेंस में बाधाएं आती हैं। फाइनेंसर ई-रिक्शा को फाइनेंस करने में संकोच करते हैं।
देखा जाए तो ई-ऑटो और ई-रिक्शा की मांग टियर-2 और टियर-3 शहरों में ज्यादा है और आवागमन के लिए किफायती विकल्प साबित हो रही हैं।
समय के साथ जैसे-जैसे ई-वाहनों का चलन बढ़ेगा ये और किफायती होते जाएंगे। इन्हे चार्ज करने में भी कम समय लगेगा और यह लंबी दूरी तक भी चल सकेंगे।
ड्राइवस्पार्क के विचार
हालांकि ई-रिक्शा देश में लंबे समय से मौजूद हैं, लेकिन डीजल और पेट्रोल से चलने वाले ऑटो की तादाद इनसे कहीं ज्यादा है। डीजल ऑटो शहरों में वायु प्रदुषण का मुख्य कारण हैं, इससे निजात पाने के लिए जरुरी है कि सरकार ई-रिक्शा को शहरों में अनिवार्य करे और इसकी खरीद पर विषेश छूट भी दे।