जानिए कैसे, जयपुर में गरीब महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रहा है ई-रिक्शा

जयपुर में पिंक सिटी रिक्शा कंपनी (PCRC) तेजी से ई-रिक्शा में इजाफा कर रहा है और इन रिक्शों को वहां के पुरूष नहीं बल्कि महिलायें चलाती हैं।

आज के समय में सड़कों पर गाहे बगाहें ई-रिक्शा का दिखना एक आम बात है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या और जरूरतों के बीच ई-रिक्शा भी तेजी से सड़कों पर छा रहा है। लेकिन जब आप गुलाबी नगरी यानी कि जयपुर में होते हैं तो आपकी निगाहें उस वक्त बरबस ही ठहर जाती हैं जब गुलाबी रंग से सजे ई-रिक्शा पर हैंडल की कमान एक महिला को संभालते हुए देखते हैं।

जानिए कैसे, जयपुर में गरीब महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रहा है ई-रिक्शा

जयपुर में पिंक सिटी रिक्शा कंपनी (PCRC) तेजी से ई-रिक्शा में इजाफा कर रहा है और इन रिक्शों को वहां के पुरूष नहीं बल्कि महिलायें चलाती हैं। (PCRC) एक तरह से इन गरीब महिलाओं जो जयपुर सिटी के आस पास के इलाकों से आती हैं उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इसके अलावा इन महिलाओं का जोश और जुनून भी कम नहीं है जो तेजी से बदलते आज के हालातों की सुगबुगाहट पहले ही भांप चुकी है। वो भी बड़े गर्व से इन रिक्शों को ड्राइव करती हैं और आजीविका चलाती हैं।

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पुराने जयपुर शहर के एक हिस्से में भरी दोपहरी में एक सुर्ख गुलाबी रंग का ई-रिक्शा तेजी से फर्राटा भरते हुए आता है और एक सिग्नल पर रुक जाता है। इस रिक्शे को एक महिला चला रही होती है जिसने खास राजस्थानी परिधान सलवा सूट पहन रखा है। उस रिक्शे के आस पास से गुजरने वाली हर निगाहें बार बार उसे ही देखती हैं, कुछ निगाहें तो आगे निकलने के बावजूद बार बार मुड़कर उस महिला को ही देखती हैं।

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लेकिन उस रिक्शे पर बैठी वो महिला बड़े ही सामान्य तरीके से व्यवहार करते हुए सिग्नल पर उसके चालू होने का इंतजार कर रही होती है। जैसे ही सिग्नल आॅन होता है वो महिला तेजी से रिक्शे को लेकर आगे बढ़ती है। इस बीच रिक्शे पर ​पेंट से लिखा हुआ 'पिंक सिटी रिक्शा कंपनी' सूरज की तेज रोशनी में चमक उठता है।

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ये वो दृश्य था जो दूसरे राज्य के रहने वालों के लिए एक अचरज भरे अनुभव से कम नहीं होगा। जहां देश के कई हिस्सों में आज भी महिलायें महज घर के रसोई तक सीमित हैं वैसे इलाकों से आने वालों के लिए जयपुर की सड़कों पर फर्राटा भरती गुलाबी सेना की इन विरंगनाओं को देखना बेहद आश्चर्यजनक होगा।

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खैर, इस बारे में बात करते हुए पिंक सिटी रिक्शा कंपनी की हेड राधिका कुमारी बताती हैं कि, जब हमने शुरू किया था उससे पहले यहां पर कोई भी महिला रिक्शा नहीं चलाती थी। आपको बता दें कि, एक एनजीओ ने जयपुर में ऐसी महिलाओं के जिंदगी को बेहतर बनाने का बीड़ा उठाया, जिनके अंदर काबलियत है लेकिन मजबूरीवश अपनी आजीविका चलाने में असमर्थ हैं।

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इस एनजीओ ने ऐसी महिलाओं को इकट्ठा किया जो जयपुर के आस पास झुग्गी झोपड़ियों में रहती थीं और कुछ करना चाहती थीं। इन महिलाओं को कंपनी द्वारा बाकायदा ट्रेनिंग दी गयी ताकि वो ई-रिक्शा चला सकें। ये महिलायें जयपुर में आने वाले पर्यटकों को जयपुर की गलियों की सैर कराती हैं और इसके बदले उनकी अच्छी कमाई भी होती है।

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आप इस योजना की गठित शुरूआत और सफलता का अंदाजा राधिका कुमारी की इन बातों से लगा सकते हैं। राधिका बताती हैं कि, हमने इस योजना में शहर के उन सभी पांच सितारा होंटलों से टाई-अप किया है जहां भी पर्यटक आते हैं। राधिका कहती हैं कि, हम इन महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने के साथ ही पर्यावरण का भी बखूबी ख्याल रखते हैं इसलिए हम आधुनिक ई-रिक्शा का प्रयोग करते हैं।

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आपको बता दें कि, कंपनी ने पहले कुछ महिलाओं के साथ इसकी शुरूआत की थी लेकिन आज के समय में कंपनी में 50 से ज्यादा महिलायें शामिल हो चुकी हैं। जो बखूबी जयपुर की गलियों में ई-रिक्शा दौड़ा रही हैं।

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तमाम चुनौतियों के बाद मिली सफलता:

ये सबकुछ इतना आसान नहीं था इसके लिए कड़ी चुनातियों से होकर गुजरना पड़ा। जिस वक्त इसकी शुरूआत हुई उस वक्त कुछ महिलायें ही इसके लिए तैयार थीं। राधिका बताती हैं कि, इसके लिए हमने दिसंबर 2016 में सेल्फ हेल्प ग्रूप की शुरूआत की और महिलाओं तक खुद जाकर इस योजना के बारे में बताया।

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शुरूआती दौर में हमें लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। लोग कहते थें कि, वो महिलाओं को रिक्शा वाला क्यों बनाना चाहती है। इसके अलावा कुछ लोगों का कहना था कि, ये मर्दों का काम है, इस तरह महिलाओं को सड़क पर रिक्शा चलाना उचित नहीं है। लेकिन इस कंपनी ने हार नहीं मानी और महिलाओं से लगातार संपर्क करती रही। महिलाओं और उनके परिजनों को समझाया गया कि, ये उनकी बेहतरी के लिए है।

बुश्किल कुछ महिलायें इसके लिए तैयार हुईं और आज उन्हीं महिलाओं को देखकर जयपुर की गलियों में तकरीबन 50 महिलायें हैं जो बड़े शान से ई-रिक्शा चलाती हैं और आज अपने पैरों पर खड़ी हैं।

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ट्रेनिंग भी बनी चुनौती:

राधिका अपने चुनौतियों के बारे में बताते हुए कहती हैं कि, जब कुछ महिलायें इसके लिए राजी हो गयी थीं। तो दूसरी सबसे बड़ी चुनौती थी कि, उन्हें किस प्रकार से ट्रेनिंग दी जाये। उस वक्त शहर में महिलाओं को रिक्शा की ट्रेनिंग देने वाली कोई भी संस्था नहीं थी। इसके अलावा सिर्फ मर्द ही थें जो ई-रिक्शा चलाना जानते थें। यदि पुरूषों से इन्हें ट्रेनिंग दी जाती तो मुश्किलें और भी बढ़ सकती थीं।

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क्योंकि ड्राइविंग की ट्रेनिंग के दौरान कई बार ऐसा होता है कि, सीखने वाला और ट्रेनिंग देने वालों के शरीर संपर्क में आते हैं। ऐसे में यदि पुरूष ट्रेनरों से इन महिलाओं की ट्रेनिंग करायी जाती तो शायद वो इसके लिए तैयार नहीं होती। इसलिए कंपनी ने खुद अपनी महिलाओं को पहले ट्रेनिंग दी और जब उन्होनें सीख लिया तब उन्होनें इन गरीब महिलाओं को ट्रेनिंग दी।

ये एक अप्रत्याशित अनुभव था:

महिलाओं के लिए बेशक ये एक अप्रत्याशित अनुभव था। वहीं पुरूष रिक्शा वाले इन महिलाओं को देखकर खासे नाराज थें। उनका मानना था कि, ये वो काम है जिस पर सिर्फ मर्दों का हक है और ऐसा करना महिलाओं के लिए उचित नहीं है। ऐसा कई बार हुआ जब इन महिलाओं को पुरूष ड्राइवरों द्वारा सड़क पर टकराव और फब्तियों का भी सामना करना पड़ा। खैर आज भी इस स्थिती में कुछ खास बदलाव नहीं आया है लेकिन कुछ ऐसा बदला है जो सबसे महत्वपूर्ण था। अब इन महिलाओं की सोच बदल गयी है जो कि एक अच्छे भविष्य का संकेत है।

नोट: ये लेख मिलाप में सबसे पहले छपा था, ये अनुभव वहां के लेखक का है।

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Hindi
English summary
PCRC’s e-rickshaws aim to improve lives of poor urban women. The company trains women living in slums in and around Jaipur to take tourists on customised tours around the old city.
Story first published: Friday, June 8, 2018, 15:42 [IST]
 
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