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जारी हुआ देश का पहला मोनोकुलर (एक आंखे से देखनेवाले) ड्राइविंग लाइसेंस
देश में एक आंख से देख सकने वाले (मोनोकुलर दृष्टि) को भी ड्राइविंग लाइसेंस दिया जाएगा। 26 वर्षिय एन जे शिराब्तिनाथ मोनोकुलर दृष्टि वाले देश के पहले नागरिक बन गए हैं जिन्हें ये लाइसेंस जारी हुआ है।
देश में एक आंख से देख सकने वाले (मोनोकुलर दृष्टि) को भी ड्राइविंग लाइसेंस दिया जाएगा। 26 वर्षिय एन जे शिराब्तिनाथ मोनोकुलर दृष्टि वाले देश के पहले नागरिक बन गए हैं जिन्हें ये लाइसेंस जारी हुआ है। शिराब्तिनाथ को यह लाइसेंस तमिलनाडू के मदुरै साउथ आरटीओ द्वारा जारी किया गया।
शिराब्तिनाथ मदुरै के पलंगमनाथम के रहने वाले हैं। दो साल की उम्र में एक हादसे के चलते उनकी एक आंख की रोशनी चली गई थी। उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि एक आंख से न देख पाने वाले शख्स को भी ड्राइविंग लाइसेंस मिल सकता है।
लेकिन एक दिन उनके एक दोस्त ने उन्हें केंद्र सरकार का एक आदेश दिखाया जो कि 21 नवंबर 2017 को जारी किया गया था। आदेश के मुताबिक यदि प्रार्थी जरूरी मेडिकल टेस्ट पास कर लेता है तो एक आंख से ही देख पाने वाले को भी ड्राइविंग लाइसेंस दिया जा सकता है। इस आदेश को देखने के बाद उन्होंने आरटीआई डाली कि यह आदेश तमिलनाडु में प्रभावी है कि नहीं? 11 सितंबर 2018 को आरटीआई में जवाब मिला कि आरटीओ से इस आदेश के तहत लाइसेंस जारी करने को कहा गया है।
मोनोकुल दृष्टि वाले व्यक्ति को ड्राइविंग लाइसेंस पाने के लिए आंख की विजुअल एक्यूटी 6/12 होनी चाहिए। जिसमें शिराब्तिनाथ एलिजबल हुए और उसके बाद शिराब्तिनाथ को विजन टेस्ट के साथ-साथ कुछ और टेस्ट पास करने पड़े। सोमवार को उन्होंने ड्राइविंग टेस्ट भी पास कर लिया है और और देश के पहले नागरिक बन गए हैं जिन्हें एक आंख की रोशनी न होने के बावजूद ड्राइविंग लाइसेंस मिलेगा।
मोनोकुलर दृष्टि के बावजूद शिराब्तिनाथ को जो ड्राइविंग लाइसेंस मिला है वो अपने आप में एक उदाहरण है कि यदि सरकार चाहे तो किस तरह से दिव्यांगो की मदद की जा सकती है। कई बार लोग टेक्निकल रूप से सक्षम होने के बावजूद सिर्फ नियमों के कारण जरूरी सेवा या सुविधा का लाभ नहीं ले पाते। ऐसे में क्षेत्रों को भी टटोलना चाहिये जहां सरकार दिव्यांगो को किसी भी तरह से मदद कर सकती हो, जिससे उनका जीवन कुछ आसान बन सके।
जरूरत है कि सरकार के अलावा प्राइवेट संस्थान भी दिव्यांगों की मदद के लिए आगे आएं। पढ़ाई-लिखाई से लेकर नौकरी और जीवन-यापन तक में प्राइवेट सेक्टर कैसे दिव्यांगों को मदद कर सकता है और उनके प्रतिभाओं को मान दे सकता है। दिव्यांगो मे किसी भी तरह से प्रतिभा की कोई कमी है ऐसा नहीं है यदि सरकार या गैरसरकारी संस्थाएं चाहें तो उनकी प्रतिभावों का सही ढंग से उपयोग किया जा सकता है।