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दिव्यांग व्यक्ति ने अपने लिए बनाई स्कूटर, इस तरह से खुद को किया आत्मनिर्भर
अगर व्यक्ति के भीतर जीने की इच्छा शक्ति और दुनिया को जीतने का हौसला हो तो वहा क्या कुछ नहीं कर सकता है। ऐसे लोगों को किसी भी तरह की परेशानी नहीं रोक सकती है, इसका जीता-जागता उदाहरण गुजरात के मुंद्रा तालुक के रहने वाले 47 वर्षीय धनजीभाई केराई है।
धनजीभाई केराई दो साल के थे तब उन्हें पोलियो ने जकड़ लिया था, इसके बाद से ही वह माता-पिता पर आश्रित थे। लेकिन आज हम उनके एक शानदार काम के बारें में बताने वाले है। दरअसल धनजीभाई केराई इलेक्ट्रिशियन का काम करते हैं तथा उन्हें बाहर जाने के लिए हमेशा दूसरों की मदद लेनी पड़ती थी।
उनके पास और कोई विकल्प भी नहीं था, वह एक मिनट में 3 मीटर चल पाते हैं। ऐसे में उन्होंने इसकी तरकीब खोज निकाली और अपने जरूरत अनुसार स्कूटर को मॉडिफाई करने का सोचा। उस समय तक दिव्यांगो के सफर करने के लिए बहुत कम ही विकल्प थे।
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ऐसे में वह इस काम में लग गये और इसके लिए उन्होंने सबसे पहले एक पुराना स्कूटर लिया। इसके बाद उन्होंने इस बारें में सोचा कि उनके शरीर के हिसाब से स्कूटर में क्या क्या बदलाव किये जाने हैं। उनकी लम्बाई सिर्फ आधा फीट है तथा उनके दोनों पैर काम नहीं करते हैं, ऐसे में उन्हें एक हाथ से चलने वाला स्कूटर बनाना था।
इसके लिए उन्होंने स्कूटर के पिछले पहिये के बगल में दोनों तरफ दो पहिये और लगाये ताकि बैलेंस बना रहे। पीछे ब्रेक की जगह पर उन्होंने आसानी से चलने वाला लीवर लगाया। इसके बाद अपने बैठने के लिए उन्होंने सीट के आगे एक और छोटी सी सीट जोड़ी ताकि उनके हाथ हैंडल तक आसानी से पहुंच जाए।
इस तरह के उन्होंने और कई मोडिफिकेशन किये और अपने लिए इस स्कूटर को पूरी तरह से तैयार कर लिया। इस स्कूटर को मॉडिफाई करने में उन्हें 3 - 4 महीने का वक्त लग गया तथा उन्होंने इस पर 6 हजार रुपये खर्च भी किये।
धनजीभाई केराई को अब जब भी कही जाना होता था तो कोई स्कूटर पर बैठा देता था और उसे शुरू कर देता था। इस स्कूटर के बाद से उन्हें आने जाने के लिए बहुत कम ही दूसरों का सहारा लेना पड़ा। धीरे-धीरे इस स्कूटर की वजह से ही वह आस-पास के गांव में भी प्रसिद्ध हो गये।
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धनजीभाई केराई को उनके इस अविष्कार के लिए राष्ट्रीय पुरूस्कार भी प्राप्त हुआ। धनजीभाई केराई यहीं नहीं रुके, वह अपने स्कूटर में और भी मोडिफिकेशन करने लगे। उनके काम से प्रसन्न होकर कई अन्य लोग भी दूसरे दिव्यांग व्यक्तियों के लिए स्कूटर मॉडिफाई करने का आर्डर देकर जाते हैं।
हालांकि उन्होंने बताया कि सबकी शारीरिक अक्षमता दूसरे से अलग होती है, ऐसे में उस हिसाब से स्कूटर को मॉडिफाई किया जाता है। जितनी मोडिफिकेशन होती है उतनी लागत आती है। उन्होंने अब तक 12 स्कूटर बना लिए हैं तथा हाल ही में एक-दो स्कूटर का आर्डर भी मिला है।
Source: The Better India