ऑटोमोबाइल जगत के 10 ऐसे झूठ जिस पर आज भी लोग करते हैं विश्वास

यदि किसी भी बात को प्रचारित करना हो तो उसे इंटरनेट, सोशल मीडिया पर वॉयरल कर दीजिए और देखते ही देखते ही वो बात किसी जंगल में लगी आग की तरह फैल जायेगी।

अफवाहों, कहानियों और पारंपरिक कथाओं का कोई तोड़ नहीं होता है। ये एक मुंह से दूसरे मुंह दशकों और पीढ़ियों तक बस चलती रहती है और लोग गाहें बगाहें इन बातों पर भरोसा करते रहते हैं। ज्यादातर लोग इन सुनी सुनाई बातों पर बस आंख बंद करके भरोसा कर लेते हैं। इन बातों के पीछे छिपे रहस्य या फिर सच्चाई के बारे में जानने की कोशिश भी नहीं करते हैं। झूठ और बेवजह के तथ्यों के इस पुलिंदे को इस समय इंटरनेट सबसे ज्यादा तेज हवा दे रहा है।

यदि किसी भी बात को प्रचारित करना हो तो उसे इंटरनेट, सोशल मीडिया पर वॉयरल कर दीजिए और देखते ही देखते ही वो बात किसी जंगल में लगी आग की तरह फैल जायेगी। वैसे तो दुनिया भर में हर क्षेत्र में अफवाओं का बाजार गर्म है लेकिन कुछ ऐसी बातें भी हैं जो आॅटोमोबाइल जगत में भी खासी मशहूर हैं। ये कुछ ऐसे तथ्य हैं जिन पर लोग लंबे समय से भरोसा करते आ रहे हैं लेकिन इन तथ्यों में कोई भी सत्यता नहीं है। आज हम आपको अपने इस लेख में आॅटोमोबाइल जगत से जुड़े कुछ ऐसे ही रोचक तथ्यों के बारे में बतायेंगे जिन पर शायद आप भी आज तक भरोसा करते आये होंगे लेकिन उनमें सच्चाई रत्ती भर नहीं है, तो आइये जानतें हैं उन बातों को -

आॅटोमोबाइल जगत के 10 ऐसे झूठ जिस पर आज भी लोग करते हैं विश्वास

1. स्टील के मुकाबले एल्युमिनियम कम सुरक्षित है:

वाहनों की मजबूती में उसके बॉडी मेटल का प्रमुख योगदान होता है। ज्यादातर लोगों का मानना होता है कि स्टील के मुकाबले एल्युमिनियम कमजोर होता है। ये अवधारणा काफी लंबे समय से बनी हुई है और लोगों का विश्वास इस पर चलता चला आ रहा है। हाल ही में शेवरले ने एक विज्ञापन जारी किया था जिसमें बताया गया था कि फोर्ड के ट्रक की एल्युमिनियम बेड उस हद तक मजबूत नहीं है। जिसके बाद फोर्ड ने एक रिसर्च के बाद इस बात का दावा किया फोर्ड F-150 ट्रक के तकरीबन 99 प्रतिशत ग्राहकों को एल्युमिनियम बेड से कोई भी आपत्ति नहीं है।

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फोर्ड ने इंश्योरेंस इंस्टीट्यूट फॉर हाइवे सेफ्टी के एक शोध में रिपोर्ट किया कि फोर्ड F-150 अपने सेग्मेंट की सबसे ज्यादा सुरक्षित पिक अप वाहन है। इतना ही नहीं इस ट्रक का क्रैश टेस्ट भी किया गया जिसमें पाया गया कि ये ट्रक वाकई में काफी मजबूत है। इसलिए ऐसा मानना कि एल्युमिनियम किसी भी मामले में स्टील से कमजोर है ये पूरी तरह से गलत है। दरअसल वाहन निर्माता अपने वाहनों के वजन को कम करने के लिए मजबूत एल्युमिनियम मेटल का प्रयोग करते हैं और इन्हें तरह से तैयार किया जाता है कि ये किसी भी तरह के आपात स्थिति से पूरी तरह निपट सकते हैं।

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2. कोरियन कारें बेकार होती हैं:

कोरियन कारों को लेकर विश्व भर में एक ऐसी अवधारणा है कि यहां की बनी कारें बेकार होती है। हालांकि भारतीय बाजार में दक्षिण कोरिया की वाहन निर्माता कंपनी हुंडई देश की दूसरी सबसे बड़ी कार निर्माता के तौर पर उभरी है और वो लगातार भारतीय बाजार में एक से बढ़कर एक शानदार कारों का पेश कर रही है। कोरियन कारों की क्वालिटी को लेकर कई बार सवाल उठे हैं। लेकिन हाल ही में जे. डी. पॉवर ने कोरिया की वाहन निर्माता कंपनी किया मोटर्स को बेस्ट क्वॉलिटी के लिए पुरस्कृत भी किया है। इससे ये साफ होता है कि कोरियन कारों के बारे में लोगों की अवधारणा पूरी तरह गलत और अफवाह मात्र है।

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3. हाइब्रिड कारें धीमीं होती हैं:

हाइब्रिड कारों को लेकर ऐसा रियूमर है कि वो स्पीड की मामले में पेट्रोल कारों से धीमीं होती हैं। शुरूआती दिनों में इस बात का जवाब शायद किसी के पास भी नहीं था। क्योंकि लोगों के मन में अवधारणा ही ऐसी बन गई थी कि इलेक्ट्रिक मोटर सामान्य इंजन के मुकाबले ज्यादा स्पीड जेनेरेट नहीं करता है। लेकिन हाल के दिनों में RAV4 और Lexus 450h जैसील कारों पे ये साबित कर दिया है कि हाइब्रिड कारों के बारे में लोगों की अवधारणा पूरी तरह गलत है।

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इतना ही नहीं ये कारें सामान्य तौर पर पेट्रोल से चलने वाले अपने ही मॉडल के मुकाबले ज्यादा पॉवरफुल हैं और इनकी स्पीड भी बेहद ही शानदार है। इस समय की हाइब्रिड कारों में अत्याधुनिक बैटरी का प्रयोग किया जा रहा है जो कि वजन में काफी हल्की और ज्यादा पॉवर वाली हैं। इतना ही नहीं माइलेज के मामले में भी ये कारें काफी किफायती है। इसलिए ऐसा मानना कि हाइब्रिड कारें सामान्य कारों के मुकाबले किसी भी मामले में पीछे हैं ये पूरी तरह गलत है।

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4. एसयूवी वाहनों के पलटने का डर:

एसयूवी यानि की स्पोर्ट यूटिलिटी व्हीकल, आज के समय में दुनिया भर में एसयूवी वाहनों की मांग लगातार बढ़ रही है। हर तरह की स्थिति और सड़क पर फर्राटे से दौड़ने वाले इस वाहन के बारे में एक ऐसा रियूमर है कि ये सड़क पर पलट सकती है और रोल ओवर करते हुए किसी भी दुर्घटना का शिकार हो सकती है। हालांकि शुरूआती दौर में ऐसी कुछ घटनाएं देखने को मिली भी हैं लेकिन उन घटनाओं के पिछे बहुत से कारक काम करते हैं। महज किसी कुछ घटनाओं से ऐसी अवधारणा बना लेना सही नहीं हैं।

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खैर समय के साथ तकनीकी और विज्ञान ने प्रगति की और आज वाहनों में अत्याधुनिक ट्रॅक्शन कंट्रोल सिस्टम का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा आज के एसयूवी में हिल एसिस्ट, स्लोप कंट्रोल जैसे फीचर्स को भी शामिल किया जा रहा है। जो कि एसयूवी को रोड़ पकड़ कर चलने की सुविधा प्रदान करते हैं। आज के समय में बाजार में कई ऐसी एसयूवी हैं ​जो आकार और लंबाई में काफी बड़ी हैं लेकिन वाहन निर्माताओं ने उन वाहनों में बेहतरीन तकनीकी और फीचर्स का प्रयोग किया है।

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5. अमेरिकन कारें अमेरिका में बनती हैं:

दुनिया की सबसे ताकतवर मुल्क की गद्दी पर काबिज अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अपने भाषणों में देश के आॅटोमोबाइल इंडस्ट्री के बदलने के चाहे कितने भी दावे कर लें लेकिन आज भी अमेरिका की ज्यादातर वाहनों पर टोयोटा का ही राज है। ज्यादातर लोग ये समझ नहीं पाते हैं कि जहां पर कारों को असेंबल किया जाता है केवल वही जगह उसकी प्रमाणिकता तय नहीं करता है बल्कि उस जगह की अहम भूमिका होती है जहां से उस कार के पार्ट्स को बनाया जाता है इकट्ठा किया जाता है।

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अमेरिका की प्रमुख एसयूवी ब्रांड जीप ब्राजिल, चीन, भारत और मैक्सिको में बनती है और विश्व बाजार में इसकी सफलता पूर्वक बिक्री भी की जाती है। अमेरिका की मशहूर कंपनियों के वाहनों के पार्टस दूसरे देशों में बनते हैं और उन्हें वापस अमेरिका में असेंबल किया जाता है। इसलिए ऐसी धारणा रखना कि अमेरिकी कारें अमेरिका में बनती हैं पूरी तरह गलत है।

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6. ज्यादा आॅक्टेन बढ़ाता है पॉवर:

आॅक्टेन एक ऐसा घटक होता है जो कि ईंधन में पाया जाता है। लंबे समय से ऐसी अवधारणा रही हैं कि ईंधन यानि कि पेट्रोल में जितना हाई आॅक्टेन होता है वो आपके वाहन को उतना ही ज्यादा पॉवर भी देता हे। ये सही है कि लो आॅक्टेन का फ्यूल क्वॉलिटी के मामले में कमजोर होता है जो कि आपके वाहन के इंजन पर बुरा प्रभाव डालता है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हाई आॅक्टेन का फ्यूल आपके इंजन को ज्यादा पॉवर देगा।

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दरअसल फ्यूल कंपनियां हाई आॅक्टेन के नाम पर प्रीमियम और सुपर कई अलग अलग वैरायटी के रूप में ईंधन की बिक्री करती हैं और बेहतरीन परफार्मेंश का दावा करती हैं। लेकिन ये ध्यान रखिये कि आपकी कार का परफार्मेंश न केवल फ्यूल पर निर्भर होता है बल्कि आपकी ड्राइविंग स्टाइल, इंजन की स्थिति और भौगोलिक परिदृश्य भी इसके लिए उतना ही जिम्मेदार होता है। इसलिए ऐसे लोग जो कि 93-octane के फ्यूल को बहुत ज्यादा पसंद करते हैं उन्हें ये फैक्ट जरूर जानना चाहिएं।

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7. आॅल व्हील ड्राइव कारें अपराजित हैं:

आॅल व्हील ड्राइव AWD एक ऐसी तकनीकी है जो कि किसी भी वाहन में बेशक असीम उर्जा भर देती है। क्या आपने ऐसी किसी 4×4 यानि कि आॅल व्हील ड्राइव कार को किसी मिट्टी, कीचड़, रेत या फिर बर्फ में फंसा देखा है। शायद ऐसा हर बार संभव न हो लेकिन आॅल व्हील ड्राइव वाहनो के लिए जो अवधारणा हैं कि वो किसी भी परिस्थिति में फंस नहीं सकते हैं ये गलत है। दरअसल किसी भी वाहन के चलने के लिए बहुत सारे कारक जिम्मेवार होते हैं।

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आॅल व्हील ड्राइव वाले वाहन चालक ये मानते हैं कि उनकी कार हर कं​डीशन में चल सकती है और उन्हें कोई भी नहीं रोक सकता है। लेकिन ऐसा नहीं है, यदि आॅल व्हील ड्राइव वाली कार का पहिया या फिर सस्पेंशन डैमेज हो तो उस स्थिति में ये कार उतनी ज्यादा पॉवरफुल नहीं रह पाती है। इसलिए आॅल व्हील ड्राइव कारें अपराजेय हैं ये मानना गलत है।

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8. V6 इंजन V8 इंजन जैसा पॉवरफुल नहीं हो सकता है:

यदि आप आॅटोमोबाइल जगत से लंबे समय से जुड़े हैं और कार, स्पीड और तकनीकी आपके खून में है तो आप इस बात को वाकई समझ सकते हैं। ज्यादार लोगों का मानना है कि V6 इंजन V8 इंजन जैसा पॉवरफुल नहीं हो सकता है। लेकिन इसके लिए फोर्ड को धन्यवाद देने की जरुरत है जिसने इस मित्थ को तोड़ दिया। 80 से 90 के दशक में कुछ जापानी वाहन निर्माता कंपनियां लगातार ट्वीन टर्बो टेक्नोलॉजी के प्रयोग पर बल दे रही थीं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि निसान जीटीआर एक बेहद ही शानदार कार है।

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लेकिन फोर्ड जीटी सेकेंड जेनरेशन जिसमें प्रयोग किया गया इंजन कार को 647 हॉर्स पॉवर और 550 पाउंड फिट का टॉर्क प्रदान करता है। इस कार को सबसे अलग बनाता है। इसके अलावा कंपनी ने इस कार में V8 इंजन के बजाय V6 इंजन का प्रयोग किया है। जो कि आकार में भले ही छोटा है लेकिन परफार्मेंश के मामले में यहीं तनीक भी पिछे नहीं है।

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9. कार की बैटरी को जमीन पर न रखें:

ये एक ऐसी अवधारणा है जो किसी प्रथा की तरह हमारे जीवन में चली आ रही है। ​बैटरी को लेकर हर कोई संजीदा रहता है विशेषकर कार की बैटरी। यदि कार की बैटरी कहीं डिस्चार्ज हो गई तो आपकी कार स्टॉर्ट नहीं होगा और इसके लिए​ फिक्रमंद होना लाजमी भी है। लेकिन आधुनिक बैटरी एक विशेष प्रकार की पॉलीप्रोपाइलीन प्लास्टिक में लगाई जाती है जो विद्युत इन्सुलेटर के रूप में दोगुना हो जाती है। नई बैटरियों को बेहद ही शानदार तरीके से सील किया जाता है और इसके वेंट सिस्टम में आधुनिक प्रणाली के साथ जोड़ा गया, यह लगभग इलेक्ट्रोलाइट सीपेज और माइग्रेशन को पूरी तरह से समाप्त करता है। इसलिए आप आसानी से और बिना किसी झिझक के कार की बैटरी को कंक्रीट के सरफेस पर आसानी से रख सकते हैं। ऐसा मानना कि आप कार की बैटरी को जमीन पर नहीं रख सकते हैं पूरी तरह से गलत है।

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10. हर 3,000 मील पर आॅयल बदलना:

कार ड्राइविंग को लेकर लोगों में एक बात खासी मशहूर रहती है कि समय पर इंजन आॅयल बदलना। समयानुसान इंजन आॅयल को बदलते रहने से कार की ड्राइविंग भी स्मूथ रहती है और इंजन की लाइफ भी बेहतर बनी रहती है। लोगों के बीच लंबे समय से अवधारणा है कि हर 3,000 मील के बाद इंजन आॅयल को बदलना बेहद ही जरूरी होता है यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो इसका बुरा असर कार की परफार्मेंश और इंजन दोनों पर पड़ता है।

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लेकिन आधुनिक कारों के साथ ऐसा नहीं है। वाहन निर्माता कंपनियां लंबे समय से इस मसले पर शोध कर रही है। ये सही है कि कार का इंजन आॅयल ल्युब्रिकेंट और कुलैंट दोनों ही प्रदान करता है। लेकिन आज के समय में इंजन में ऐसी तकनीकी का प्रयोग किया जा रहा है जिससे हर 3,000 मील पर इंजन आॅयल बदलने की कोई जरुरत नहीं है। एक्सपर्ट की माने तो आप 4,500 से 5,000 मील तक आसानी से बिना इंजन आॅयल बदले अपनी कार ड्राइव कर सकते हैं।

ड्राइवस्पार्क उम्मीद करता है कि उपर दिये गयें मित्थ और वर्षों से कही जाने वाली अफवाहों से आप रूररू हो चुके होंगे, अब यदि आप भी इनमें से किसी धारणाओं पर बेवजह विश्वास करते हों तो आपके विचारों के बदलने का समय आ गया है।

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Hindi
English summary
We feel it’s time to expose a few of the more gregarious automotive myths and lies people still believe. In the autos realm, myths tend to focus on false information passed down generation to generation.
 
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