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भारत में बढ़ रही है एसयूवी कारों की मांग, 2026 में बिकने वाली 53% कारें होंगी एसयूवी
भारत में एसयूवी (SUV) कारों की मांग लगातार बढ़ रही है। प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल (CRISIL) ने एक रिपोर्ट में दावा किया है कि वित्तीय वर्ष 2026 तक एसयूवी कारों का बाजार बढ़कर 53 प्रतिशत हो जाएगा, जो मौजूदा वित्तीय वर्ष में 39 प्रतिशत है। रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि वित्तीय वर्ष 2022 के शुरूआती 9 महीनों में एसयूवी कारों का बाजार 48 प्रतिशत बढ़ गया, जो वित्तीय वर्ष 2022 की समान अवधि में केवल 15 प्रतिशत था।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वित्तीय वर्ष 2022 से 2026 के बीच एसयूवी कारों का बाजार प्रतिवर्ष 14-18 प्रतिशत की दर से बढ़ेगा, जबकि समान अवधि में छोटी कारों के बाजार में 6-8 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।

पिछले कुछ सालों में भारतीय कार ग्राहकों के बीच एसयूवी कारों की मांग काफी तेजी से बढ़ी है। यूटिलिटी वाहनों (UV) में कॉम्पैक्ट यूटिलिटी वाहनों की मांग सबसे ज्यादा है। यूटिलिटी वाहनों वाहनों की मांग ने हैचबैक, सेडान और फुल साइज एसयूवी को पीछे छोड़ दिया है।

क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार, जहां पहली बार कार खरीदने वाले ग्राहक हैचबैक कारों को खरीदना ज्यादा पसंद करते थे, वहीं अब नए ग्राहक कॉम्पैक्ट एसयूवी कारों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। भारतीय कार बाजार में कई कंपनियों ने हैचबैक की कीमत पर कॉम्पैक्ट एसयूवी कारों को उतारना शुरू कर दिया है। कॉम्पैक्ट एसयूवी कारें पेट्रोल और डीजल इंजन में कई नई सुविधाओं और उपकरणों के साथ किफायती कीमत पर पेश की जा रही हैं, जिससे एसयूवी और हैचबैक की कीमतों में अंतर कम हो गया है।

क्रिसिल ने अपनी रिसर्च में बताया है कि एसयूवी कारों की बढ़ती मांग भारतीय कार बाजार को दिशा दे रही है। रिपोर्ट में बताया गया है कि वित्तीय वर्ष 2013 में प्रति 100 कारों में कॉम्पैक्ट एसयूवी कारों की संख्या 42 से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2020 में 68 हो गई है।

रिपोर्ट के अनुसार, भारत में मारुति विटारा ब्रेजा, हुंडई वेन्यू, किया सेल्टोस, मारुति सुजुकी अर्टिगा, टाटा नेक्सन, महिंद्रा एक्सयूवी300, रेनॉल्ट ट्राइबर, रेनॉल्ट काइगर, निसान मैग्नाइट एसयूवी वाहन सेगमेंट कुल मिलकर 70-80 फीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि एसयूवी कारों के तरफ ग्राहकों के बढ़ रहे झुकाव से हैचबैक सेगमेंट की कारों को सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है। छोटी कारों का बाजार वित्तीय वर्ष 2012 में 65 प्रतिशत था, जो मौजूदा वित्तीय वर्ष में घटकर 45 प्रतिशत रह गया है।