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मारुति सुजुकी ने शुरू किया E85 वाहनों का विकास, 2023 में आ सकती है पहली फ्लेक्स इंजन कार
मारुति सुजुकी इथेनॉल से चलने वाली गाड़ियों की टेस्टिंग शुरू कर चुकी है। वर्तमान में कंपनी ई85 (E85) फ्लेक्स इंजन गाड़ियों का परीक्षण कर रही है जो 85 प्रतिशत इथेनॉल से चलने में सक्षम होंगी। अपनी गाड़ियों को फ्लेक्स फ्यूल के अनुकूल बनाने के प्रयास में कार निर्माता अप्रैल 2023 से अपनी सभी मॉडलों को E20 कंप्लेंट बनाने जा रही है। मारुति ने कहा है कि E20 कंप्लेंट इंजन के बाद बहुत जल्द उसके वाहन E85 फ्लेक्स फ्यूल के अनुसार बनाए जाएंगे।
वर्तमान में, भारत में 10-15 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल बेचा जा रहा है। लेकिन इथेनॉल की मात्रा को बढ़ाने के लिए कुछ संशोधनों की आवश्यकता होती है। इसके लिए वाहन के इंजन और फ्यूल सिस्टम में कुछ बदलाव करने पड़ते हैं। इथेनॉल मिश्रित ईंधन के लिए इंजन का रिकैलिब्रेशन किया जाता है जिसमें इंजन को इथेनॉल की कम कैलोरी वैल्यू और ठंड में जमने की समस्या को दूर किया जाता है।
फिलहाल, दुनिया भर में फ्लेक्स इंजन वाहन बीएस-4 मानकों पर आधारित है। भारत ऐसा पहला देश है जो नवीनतम बीएस-6 मानकों के अनुसार फ्लेक्स इंजन को विकसित कर रहा है। इस वजह से भारत में बनाने वाले बीएस-6 फ्लेक्स इंजन वाहन अन्य देशों के फ्लेक्स इंजन वाहनों से अधिक स्वच्छ होंगे।
मारुति ने इलेक्ट्रिक वाहनों पर भी काम शुरू कर दिया है 2025 तक अपना पहला मॉडल पेश करेगी। वहीं कंपनी वैकल्पिक ईंधन पर भी बड़े पैमाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। वर्तमान में, कार निर्माता के पास एक विस्तृत सीएनजी पोर्टफोलियो है और दिलचस्प बात यह है कि इथेनॉल ईंधन के विकास के अलावा, कंपनी बायो-सीएनजी भी तलाश रही है।
जहां एक तरफ इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से विकसित किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर आंतरिक दहन इंजन वाहनों को भी अधिक स्वच्छ बनाने पर जोर दिया जा रहा है। मारुति का कहना है कि इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ-साथ हमें स्वच्छ आंतरिक दहन तकनीक भी विकसित करना चाहिए।
देश को ईंधन में आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास में हाल ही में हरियाणा के पानीपत में देश का सबसे बड़ा बायो फ्यूल प्लांट शुरू किया गया है। इस प्लांट को तैयार करने के लिए 900 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च किया है। इसका प्लांट की स्थापना देश में जैव ईंधन के उत्पादन और उपयोग को बढ़ावा देने के प्रयासों को मजबूत करने के उद्देश्य से की गई है।
इस प्लांट में लगभग दो लाख टन चावल के भूसे का उपयोग करके सालाना तीन करोड़ लीटर जैव ईंधन यानी इथेनॉल का उत्पादन किया जाएगा। इथेनॉल को तैयार करने में कृषि-फसल अवशेषों का अंतिम उपयोग होगा जिससे किसान सशक्त होंगे और उन्हें अतिरिक्त आय सृजन का अवसर मिलेगा।
जैव-ईंधन को तैयार करने के लिए कई तरह के जैविक उत्पादों का उपयोग किया जाता है। आमतौर पर इसे तैयार करने के लिए मक्के, गन्ने और चावल की फसल का उपयोग किया जाता है। कई देशों में जैव-ईंधन (इथेनॉल) को तैयार करने के लिए जट्रोफा (Jatropha) का इस्तेमाल किया जाता है, जो एक तरह का पौधा है।