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भारत में डीजल कारों का आकर्षण हो रहा है खत्म, पेट्रोल-डीजल दर के घटते अंतर से डीजल कारों की बिक्री घटी
भारत में पिछले एक दशक में डीजल कारों की बिक्री में भारी गिरावट आई है। डीजल कारों की घटती बिक्री का कारण पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगातार कम होते अंतर को बताया जा रहा है। लोग अक्सर सस्ते ईंधन के चक्कर में डीजल कारें खरीदते थे लेकिन एक दशक में ईंधन की कीमत में बढ़ोतरी ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लगभग बराबर में लाकर खड़ा कर दिया है। हालांकि, अभी भी लग्जरी कार सेगमेंट में डीजल कारों का जलवा बरकरार है।
बाजार में डीजल कारों की हिस्सेदारी घटी
भारतीय ऑटोमोबाइल निर्माता संघ (SIAM) की मानें तो, 2012-13 के दौरान पैसेंजर कार सेगमेंट में डीजल कारों की हिस्सेदारी 58 प्रतिशत थी जो अब गिरकर मात्र 17 प्रतिशत रह गई है। उस समय डीजल के दाम पेट्रोल के मुकाबले 25-30 रुपये कम हुआ करते थे, जो कि डीजल कारों के प्रति आकर्षण का सबसे बड़ा कारण था। लेकिन जैसे-जैसे पेट्रोल और डीजल की कीमत के बीच अंतर कम होता गया, ग्राहकों ने डीजल कारों से किनारा करना शुरू कर दिया।
SIAM के आंकड़ों के अनुसार, मौजूदा समय में डीजल के दाम पेट्रोल के मुकाबले अब केवल 7-9 रुपये ही कम रह गए हैं। वहीं, यात्री वाहन सेगमेंट में डीजल कारों की हिस्सेदारी घटकर केवल 17 फीसदी ही रह गई है।
बता दें कि अमूमन बाजार में डीजल कारों की कीमत पेट्रोल कारों के मुकाबले ज्यादा ही होती है, फिर भी ईंधन के खर्च में बचत करने के मकसद से ग्राहक डीजल कारों को ज्यादा पसंद करते हैं। हालांकि, जिस तरह पेट्रोल-डीजल की कीमतों में अंतर कम हो रहा है, डीजल कारों का आकर्षण समाप्त हो रहा है।
सीएनजी और इलेक्ट्रिक कारें बनी विकल्प
बता दें कि दिल्ली जैसे राज्यों में डीजल वाहनों पर कड़ी पाबंदी भी डीजल वाहनों की घटती बिक्री का कारण है। देश भर में वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए स्वच्छ ईंधन पर चलने वाले वाहनों को अपनाया जा रहा है। देश के कई राज्यों में इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने के लिए नीतियां बनाई गई हैं, जिससे ग्राहक सरकार से सब्सिडी हासिल कर कम कीमत पर इलेक्ट्रिक कार खरीद रहे हैं।
इसके अलावा अब सीएनजी की कम कीमत भी कार ग्राहकों को आकर्षित कर रही है। मारुति सुजुकी ने पिछले वित्तीय वर्ष (2020-21) में 1.57 लाख सीएनजी कारों को बेचने का दावा किया था। यह आंकड़ा साल 2019-20 के दौरान बेची गई सीएनजी कारों के मुकाबले 45 प्रतिशत अधिक था।
डीजल कारों पर ज्यादा टैक्स
केंद्र सरकार का कहना है कि डीजल कारों से ज्यादा प्रदूषण फैलता है इसलिए इनपर टैक्स ज्यादा है। सरकार की मौजूदा टैक्स नीति के अनुसार, 4 मीटर से छोटी पेट्रोल पर 29 प्रतिशत जीएसटी लगाया जाता है जबकि डीजल कार पर यह 31 प्रतिशत है। वहीं 4 मीटर से लंबी कारों की श्रेणी में पेट्रोल कार पर जीएसटी दर 43 प्रतिशत और डीजल कार पर 48 फीसदी है। इस वजह से डीजल कारों की कीमत पेट्रोल कारों से अधिक होती है।
डीजल कारों की कम समय सीमा
सरकार की नई नीतियों के अनुसार अब देश में पेट्रोल कारों का रजिस्ट्रेशन 15 साल और डीजल कारों का रजिस्ट्रेशन 10 साल के लिए होता है। यानि एक ग्राहक अपनी डीजल कार को 10 साल के बाद इस्तेमाल नहीं कर सकता और न ही उसे बेच सकता है। स्क्रैपिंग नीति के अनुसार इन कारों को कबाड़ में देना (स्क्रैपिंग) अनिवार्य कर दिया गया है।
मेंटेनेंस पर ज्यादा खर्च
आमतौर पर डीजल कारों पर मेंटेनेंस के लिए पेट्रोल कारों के मुकाबले ज्यादा खर्च करना पड़ता है। यह खर्च एक पेट्रोल कार पर होने वाले मेंटेनेंस के खर्च से 10-15 फीसदी अधिक होता है।
कई कंपनियों ने बंद किया डीजल कारों का उत्पादन
बता दें कि मारुति सुजुकी ने पिछले साल से ही डीजल कारों का उत्पादन पूरी तरह बंद कर दिया है। मारुति के अलावा, हुंडई, स्कोडा, फॉक्सवैगन ने भी भारत में बजट सेगमेंट में डीजल कारों का उत्पादन बंद कर दिया है।