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फॉक्सवैगन पर चला एनजीटी का कोड़ा, 171 करोड़ रुपये का लगाया जुर्माना
फॉक्सवैगन इंडिया को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के चार सदस्यीय पैनल द्वारा 171.34 करोड़ रुपये का जुर्माना भरने को कहा गया है।
फॉक्सवैगन इंडिया को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के चार सदस्यीय पैनल द्वारा 171.34 करोड़ रुपये का जुर्माना भरने को कहा गया है। विशेषज्ञों के इस पैनल ने कहा कि फॉक्सवैगन पर ये जुर्माना इसलिए लगाया गया है क्योंकि देश भर में उनकी कारों के प्रयोग से लोगों का स्वास्थ्य खराब हुआ है। एनजीटी पैनल का गठन नवंबर 2018 में हुआ था। वर्ष 2015 में फॉक्सवैगन के उत्सर्जन स्कैंडल 'डीज़लगेट' का मामला सामने आया था। इस मामले में जर्मनी की दिग्गज वाहन निर्माता कंपनी फॉक्सवैगन ने अमेरिका के सख्त प्रदूषण मानक को पारित करने के लिए अपनी डीजल कारों में एक अवैध चीट डिवाइस का उपयोग करने की बात स्वीकार किया था।
एनजीटी द्वारा 28 दिसंबर 2018 को इस मामले में एक रिपोर्ट दर्ज की गई है। जिसमें बताया गया है कि अनुमानत: फॉक्सवैगन की कारों ने साल 2016 में तकरीबन 48.678 टन एनओएक्स (नाइट्रस ऑक्साइड) का उत्सर्जन किया है। इस रिपोर्ट को ही आधार मानकर एनजीटी ने एक आंकड़ा तैयार किया है जिसके अनुसार इस अतिरिक्त नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन से देश भर में प्रदूषण का स्तर बढ़ा है और उसी के अनुसार कंपनी पर 171.34 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है।
इस पैनल ने कहा है कि, एनओ 2 का उत्सर्जन अस्थमा जैसे घातक रोग को बढ़ा सकता है इसके अलावा संभवत: इससे श्वसन संक्रमण की संभावना भी बढ़ सकती है। पैनल का मानना है कि इससे स्मॉग और एसिड रेन भी बनता है जो कि प्रदूषण के स्तर को और भी बढ़ाता है जिसका आम जन के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। लोगों के स्वास्थ्य खराब होने की संभावनाओं को देखते हुए एनजीटी ने फॉक्सवैगन पर जुर्माना लगाया है।
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इस मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के चेयरमैन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने फॉक्सवैगन इंडिया को बीते वर्ष 2018 नवंबर में को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को 100 करोड़ रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया था। ये जुर्माना फॉक्सवैगन की 3.27 लाख कारों को ध्यान में रखकर लगाया गया है जिसमें अवैध चीट डिवाइस मिला है।
NGT ने एक संयुक्त टीम भी गठित की जिसमें CPCB, भारी उद्योग मंत्रालय, ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ARAI) और राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI) शामिल हैं। पूरी टीम को ये निर्देश दिया गया था कि वो इस बात की जांच करें कि, सभी निर्माता सरकार द्वारा निर्धारित पर्यावरणीय मानदंडों का पालन कर रहे हैं या नहीं, इसी आधार पर पर्यावरण हुए नुकसान का सटीक अनुमान भी लगाया गया है।
भारत में जुर्माने के अलावा फॉक्सवैगन यूरोप में अपने कुछ वाहनों को रिकॉल भी कर सकता है। जर्मन फेडरल मोटर ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी (KBA) ने हाल ही में वोक्सवैगन से 1.2-लीटर की क्षमता वाले इंजन की जांच शुरू की है। केबीए इस बात की तस्दीक कर रहा है कि कहीं निर्माताओं ने 1.2 लीटर की क्षमता वाले इंजन को सॉफ्टवेयर अपडेट करने के नाम पर किसी ऐसे चीट डिवाइस को तो स्थापित नहीं किया है जिससे उत्सर्जन के परीक्षणों को धोखा दिया जा सके। ये अपडेट कंपनी ने अपनी हैचबैक कार पोलो में किया था।
क्या है नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल?
बहुतायत लोगों को इस बात की जिज्ञासा होती है कि आखिरी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानि की एनजीटी क्या है और इसका काम क्या है। आपको बता दें कि, भारत में बीते 2 जून 2010 को ग्रीन ट्रिब्यूनल कानून लागू किया गया था। सन 1992 में रियो में हुई ग्लोबल यूनाइटेड नेशंस कॉन्फ्रेंस ऑन एन्वॉयरनमेंट एण्ड डेवलपमेन्ट में अन्तरराष्ट्रीय सहमती बनने के बाद से ही देश में इस कानून का निर्माण जरूरी हो गया था। भारत की कई संवैधानिक संस्थाओं ने भी इसकी संस्तुती की थी। नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल एक संवैधानिक संस्था है। इसके दायरे में देश में लागू पर्यावरण, जल, जंगल, वायु और जैवविवधता के सभी नियम-कानून आते हैं।
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फॉक्सवैगन उत्सर्जन स्कैंडल पर ड्राइवस्पार्क के विचार:
फॉक्सवैगन दुनिया भर में अपने बेहतरीन वाहनों के लिए जानी जाती है। लेकिन बीते दिनों कंपनी पर यह आरोप लगा कि वो अपने वाहनों में उत्सर्जन मानकों को धोखा देने के लिए एक चीट डिवाइस का प्रयोग करती है। इस मामले में कंपनी ने इस बात को स्वयं स्वीकार भी किया है। जिसके बाद वाहनों की जांच की गई। भारत में तकरीबन 3.27 लाख कारों में ये चीट डिवाइस मिले हैं। अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल फॉक्सवैगन पर इसी बात के लिए जुर्माना लगा रही है क्योंकि एनजीटी का मानना है कि फॉक्सवैगन की इन कारों को पर्यावरण को भारी नुकसान हुआ है और आम लोगों के स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर पड़ा है। ये मामला डिजलगेट के नाम से भी जाना जाता है।