'द स्कोडा कोडिएक एक्पेडिशन' - रोमांचित कर देनेवाला सफर

हाल ही में स्कोडा ने अपनी पॉपुलर कार स्कोडा कोडिएक का मीडिया ड्राइव इवेंट रखा था। ये कोई आम मीडिया ड्राइव नहीं था। इसके लोकेशन और जिन रास्तों से हमें जाना था, उसे सुनते ही आप रोमांचित हो जाएंगे।

By Abhishek Dubey

हाल ही में स्कोडा ने अपनी पॉपुलर कार स्कोडा कोडिएक का मीडिया ड्राइव इवेंट संपन्न हुआ। इस इवेंट को 'द कोडिएक एक्पेडिशन' नाम दिया गया था। ये कोई आम मीडिया ड्राइव नहीं था। इसके लोकेशन और जिन रास्तों से हमें जाना था, उसे सुनते ही आप रोमांचित हो जाएंगे।

ये 1,000 किलोमीटर से ज्यादा लंबी यात्रा थी जिसमें चंडीगढ़ से स्पीति वैली तक जाना था। इसमें गर्मी, ठंडी और बारिश तीनों का ही अनुभव शामिल है। स्पीति वैली हिमाचल प्रदेश में पड़ता है और ये भारत और तिब्बत के बिल्कुल मध्य में बसता है।

'द स्कोडा कोडिएक एक्पेडिशन' - रोमांचित कर देनेवाला सफर

'द कोडिएक एक्पेडिशन' सफर के लिए हमें स्कोडा की पॉपुलर 7-सीटर एसयूवी कोडिएक दी गई थी, जो कि इस तरह के लंबे और एडवेंचरस जर्नी के लिए एकदम परफेक्ट है। स्कोडा कोडिएक एक शानदार और लग्जीरियस एसयूवी है और इसका बड़ा केबिन इस लंबी जर्नी में हमारे लिए काफी कंफर्टेबल और आरामदायक रहा। तो आईये हमारे इसे लंबे और रोमांचित कर देने वाले सफर की कुछ झलकिंया हम आपके साथ बांटते हैं।

'द स्कोडा कोडिएक एक्पेडिशन' - रोमांचित कर देनेवाला सफर

पहला दिन: चंडीगढ़ से मनाली

हमारा सफर शुरू होता है चंड़ीगढ़ से। चंडीगढ़ से हमें मनाली से पहुंचना था। चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर उतरते ही हमारी फुली-लोडेड स्टाइल TDI AT स्कोडा कोडियाक ट्रिम तैयार खड़ी थी और मौसस काफी गर्म। हम एसयूवी में बैठे और निकल पड़े अपने पहले मंजील मनाली की ओर।

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एसयूवी का बूट स्पेस काफी बड़ा था और हमारा सारा लगेज डिग्गी में आसानी से समा गया। चंड़ीगढ़ एयरपोर्ट से गाड़ी लेकर निकलते ही हमारा सामना शहर की सुस्त ट्रैफिक से हुआ। लेकिन स्कोडा कोडियाक की शानदार परफॉरमेंस की बदौलत हमें ट्रैफिक से निकलने में कोई खास दिक्कत नहीं आई और जैसे तैसे हम शहर से बाहर निकले। चंडीगढ़ से हम बिलासपुर की तरफ बढ़ ही रहे थे कि मौसम ने अपना रूख बदला और तेज बारिश होने लगी। लेकिन स्कोडा कोडिएक में लगे सनरूफ और Canton ऑडियो सिस्टम ने इस बारिश को दिक्कत की जगह और भी मजेदार बना दिया। बारिश और पहाड़ी रास्तों का हमने अपने ही अंदाज में मजा लिया।

'द स्कोडा कोडिएक एक्पेडिशन' - रोमांचित कर देनेवाला सफर

मनाली में जिस होटल में हमे रूकना था, वहां पहुंचते-पहुंचते हमें रात हो गई। ये 300 किलोमीटर का सफर लंबा तो जरूर था लेकिन तपती चंडीगढ़ से चिलचिलाते ठंडे मनाली की बर्फिले वादियों में पहुंचकर काफी सुकुन मिल रहा था।

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दुसरा दिन: मनाली से चंद्रताल

दुसरे दिन होटल से हम जल्दी निकले क्योंकि हमें रोहतांग पास के ट्रैफिक जाम से बचना था। उस समय ठंड बहुत ज्यादा थी लेकिन सुबह करीब 6 बजे हमने होटल छोड़ दिया था। जैसे-जैसे हम पहाड़ी रास्तों पर आगे बढ़ते रहे वैसे-वैसे हवा में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती गई, जिसे हम महसूस कर सकते थे। हमें सलाह दी गई थी की ऊंचाई से होनेवाली दिक्कतों से बचने के लिए ज्यादा से ज्यादा और नियमित अंतराल पर पानी पीते रहें।

'द स्कोडा कोडिएक एक्पेडिशन' - रोमांचित कर देनेवाला सफर

सफर में आगे बढ़ने के दौरान हमने एक और चीज नोटिस किया कि जहां शुरुआत में पहाड़ हरे-भरे दिखाई पड़ते थे, उन पर घास ईत्यादि जमे थे वहीं अब हमारा सामना बर्फ से लदे और सफेदी के चादर ओढ़े पहाड़ो से हो रहा था। यहां बताते चले की स्कोडा कोडिएक के 7-स्पीड DSG ओटोमैटिक ट्रांसमिशन ने इस ड्राइव को स्मूथ बनाने में काफी अहम रोल अदा किया, विशेष तौर पर रास्तों में पड़ने वाले बिजी बायपास को पार करने के दौरान।

'द स्कोडा कोडिएक एक्पेडिशन' - रोमांचित कर देनेवाला सफर

रोहतांग बायपास पार करने के बाद लेह-मनाली हाइवे आया, जिसका हमें लंबे समय से इंतजार था। इस हाइवे के बारे में हमने काफी कुछ सुन रखा था और उस पर ड्राइव करने के लिए हम काफी एक्साइटेड थे। हाइवे से हम ग्राम्फू की ओर चल पड़े। आगे का रास्ता काफी उबड़-खाबड़ लेकिन बहुत ही सुंदर था। सड़क बिल्कुल चिनाब नदी के बराबर में बनी थी, जिसके कारण रास्तों में हमें कई वाटर क्रॉसिंग भी मिलें। स्कोडा कोडिएक में ऑल-व्हील-ड्राइव सिस्टम दिया गया है जिसके कारण इन वॉटर क्रासिंग को पार करने में हमें काफी मजा आ रहा था।

'द स्कोडा कोडिएक एक्पेडिशन' - रोमांचित कर देनेवाला सफर

स्कोडा कोडिएक कुल पांच ड्राइविंग मोड के साथ आता है जिसमें इको, नॉर्मल, स्पोर्ट, इंडिविजुअल और स्नो शामिल है। अब तो आप समझ ही गए होंगे की इतने सारे ड्राइडिंग मोड के साथ इन लंबे रास्तों में ड्राइव कितनी मजेदार रही होगी। वहां पहुंचने के बाद ज्यादातर समय हमने स्नो मोड में ड्राइव करना ही पसंद किया क्योंकि वहां उसके लिए एकदम अनुकुल ड्राइविंग कंडीशन थी। इस बीच चतरू की पहाड़ियों के पास रास्ते में थोड़ी देर रूक कर हमने अपना लंच किया।

'द स्कोडा कोडिएक एक्पेडिशन' - रोमांचित कर देनेवाला सफर

लंच के कुछ देर बाद हमने वहां से प्रस्थान किया और चंद्रताल की ओर आगे बढ़ गए। लेकिन चतरू के बाद रोड की हालत बद से बदतर होती गई। सही मायने में तो वहां कोई सड़क ही नहीं थी। बस पथरीले रास्ते भर दिखाई देते थे। यहां तक की कई कोडिएक वहां पंक्चर भी हो गई, लेकिन स्कोडा इंडिया की टीम ऐसी परस्थितियों के लिए हमेशा तैयार रहती थी। ऐसी गाड़ियों को कुछ ही समय में रिपेरिंग कर ड्राइविंग के लिए उसे पुन: तैयार कर लिया जाता था।

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चतरू का इलाका पार करने के बाद हमारे सामने जो मंजर था उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। चारों ओर प्रकृति की अद्भुत सुंदरता थी। हालांकि रास्ता थोड़ा कठिन जरूर था। शाम होते-होते हम बाटल पहुंचे और वहां चिलचिलाती ठंड में हमने गरमा-गरम चाय पी , जो कि ऐसे मौसम में बेहद ही जरूरी था।

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शाम होते ही मौसम ने आश्चर्यजनक रूप से अपना रंग बदला और तापमान बेहद ही नीचे गिर गया। ऊपर से ठंडी हवा भी बह रही थी। हालांकि हमने सर्दी के कपड़े पहने थे और हम गाड़ी में थे, फिर भी इस मौसम को हम बखुबी महसूस कर सकते थे। मात्र 120 किलोमीटर का यह रास्ता पार करने में हमें लगभग 12 घंटे का समय लगा और करीब शाम 7 बजे हम अपने कैंप पहुंचे।

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रात में तापमान -2 डीगर तक नीचे गीर गया और टेंट से निकलकर वहां मस्ती करने की हमारी हिम्मत नहीं थी। हमें ऐसे तापमान की आदत भी न थी और हमें सर्दी ने जकड़ लिया। जैसे-तैसे अपने हमने टेंट में ही रात गुजारी और सुबह के सुरज निकलने का इंतजार करने लगे।

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लेकिन यहां हम बता देना चाहते हैं कि ये हमारे लिए बेहद ही शानदार और कभी न भुलने वाला अनुभव था। रात को बादल साफ होते ही हमें आसमान में तारे दिखाई देते थे और ऐसा अनुभव होता था मानो कि तारा बिल्कुल तुम्हारे सर के ऊपर। ऐसे अनुभव के लिए हम हर बार सर्दी और बेहद ठंडे तापमान की परवाह न करते हुए बार-बार वहां जाना चाहेंगे।

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तीसरा दिन: चंद्रताल से काज़ा

तीसरे दिन हम मशहूर चंद्रताल झील की ओर बढ़े और वहां से हमें काज़ा जाना था। सुबह हम जल्दी उठ गए और चंद्रताल की ओर बढ़े जो कि हमारे कैंप से करीब 20 मिनट की ड्राइव पर था। चंद्रताल झील तक पहुंचने में हमें आधे घंटे का वक्त लगा। वहां से करीब 10 मिनट चलने के बाद आखिरकार हमने चंद्रताल छील देखा, जिसकी सुंदरता बयां कर पाना संभव नहीं। आप खुद तस्वीरों में देख सकते हैं। हालांकि ये 10 मिनट का सफर ही 10 घंटे के बराबर था क्योंकि वहां हवा में ऑक्सीजन काफी कम था और झील पहुंचते-पहुंचते हम लगभग बेदम हो चुके थे। लेकिन वहां पहुंचकर जब हमने झील देखा तो उसकी सुंदरता के कारण धीरे-धीरे हमारी सारी थकावट गायब हो चुकी थी।

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जल्दी ही हम वहां से निकलकर काज़ा की ओर बढ़े और हमारी अगली चुनौती थी कुंजम दर्रा (Kunzum Pass). इसका रास्ता बेहद ही संकरा और खतरनाक था। लेकिन नजारा ऐसा था कि इस खतरे और परेशानी में भी हमें रोमांच नजर आ रहा था और हम ड्राइव को एंज्यॉय कर रहे थे। इसी बीच एक खाली जगह देखकर हमने गाड़ी रोकी और स्कोडा कोडिएक से कुछ कर्तब करने का प्रयास किया। अंत में करीब शाम 6 बजे हम काज़ा के उस होटल में पहुंचे जहां हमें रूकना था।

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चौथा दिन: काज़ा

काजा में हम सुबह जल्दी उठे और उस स्थान को एक्सप्लोर करने निकल पड़े। शुरुआत हमने धनकर मठ से की। हमारे होटल से धनकर मठ का रास्ता काफी सुंदर और शानदार था। ये मठ स्पीति वैली के सबसे ऊंचे पॉइंट पर बनी है और एक समय पर ये स्पीति की राजधानी रूप में पहचानी जाती थी। यहां बेहद ही शांतीपूर्ण पल बिताने के बाद हमने ताबो मठ की ओर प्रस्थान किया।

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ताबो मठ स्पीति वैली के ताबो गांव में स्थित है। इसी गांव में हमने खाना खाने का निर्णय लिया। वहां के कुछ स्थानिय व्यंजनों का आनंद लेने के बाद हम निकल पड़े दुनिया के सबसे ऊंचे पॉइंट की ओर।

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सबसे ऊंचे स्थान खोजने की दिशा में हमारा सबसे पहला पड़ाव बना हिक्कीम। हिक्मीम को दुनिया के सबसे ऊंचे पोस्ट ऑफिस के रूप में जाना जाता है, जो कि समुद्रतल से 4,440 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। इस मौके को यादगार बनाने के लिए हमने इस पोस्ट से अपने घर लेटर भी पोस्ट किया। इसके बाद हम कोमिक गए। कोमिक वह गांव है जो रोड से कनेक्टेड होनेवाला दुनिया का सबसे ऊंचे गांव के रूम में विख्यात है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 4,587 मीटर है। इसी गांव में वो रेस्टोरेंट भी है जिसे रोड कनेक्टिविटी वाले सबसे ऊंचाई पर स्थित रेस्टॉरेंट के रूप में जाना जाता है।

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हम वहां उपस्थित 'की गोम्पा' (Key Monastery) में भी जाना चाहते थे लेकिन कोमिक से निकलते-निकलते ही शाम के 6 बज चुके थे और बाहर अंधेरा हो चला था। इसलिए हम सिर्फ 'की गोम्पा' की सिढियों तक ही पहुंच पाए। 'की गोम्पा' के हमने दुर से ही दर्शन किए और वापिस हो लिए। इसके बाद हम वापस हॉटेल गए। सुबह उठकर हमने वापसी की यात्रा प्रारंभ की और लगभग दो दिनों में चंडीगढ़ वापस पहुंचे।

'द स्कोडा कोडिएक एक्पेडिशन' - रोमांचित कर देनेवाला सफर

छह दिनों की इस यात्रा में हमने करीब हजारों किलोमीटर का सफर तय किया और स्कोडा कोडिएक ने हमारा बखूबी साथ निभाया। सभी कंडीशन में एसयूवी ने अच्छा प्रदर्शन किया और ये एक शानदार और यादगार ट्रिप रहा जो हमने स्कोडा कोडिएक की बदौलत और स्कोडा कोडिएक के साथ किया। स्कोडा कोडिएक के बारे में अधिक जानने के लिए आप इसका रिव्यू भी पढ़ सकते है। इसका लिंक नीचे दिया गया है।

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Hindi
English summary
The Skoda Kodiaq Expedition — A Journey To ‘The Middle Land’. Read in Hindi.
 
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