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टॉप 10 कारें जो भारत में फ्लॉप रही: क्या कारण है कि अच्छी कारों की भी बिक्री नहीं हो पाई
कुछ कारों की मौत प्राकृतिक होती है जबकि कुछ कारें चलने के पहले ही व्यर्थ हो जाती हैं। बिक्री की संख्या कम होना ही कार के असफल होने का कारण नहीं है बल्कि कारें अन्य कई कारणों से भी असफल होती हैं जैसे मूल्य अधिक होना, मार्केटिंग अच्छी तरह न होना या उस विशेष मार्केट के प्रति अनुकूल न होना।
हमने उन 10 कारों को लिया जो पिछले कई वर्षों में देश के ऑटोमोबाइल मार्केट में अपना प्रभाव ज़माने में असफल रही। इनमें से कुछ कारों को बहुत ही कम सफ़लता मिली तथा इस इंडस्ट्री के विशेषज्ञ भी इस बात से हैरान थे – आइए इन कारों की सूची देखें।
कहानी अगले भाग में जारी रहेगी। अधिक जानकारी के लिए स्लाइड्स पर क्लिक करें:
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1. प्यूजो 309: 1994–1997
मूलभूत विशेषताएं: पेट्रोल-1.4-लीटर, 70 बीएचपी, 110 एनएम, 960 किग्रा.; डीजल-1.5-लीटर, 57 बीएचपी, 97 एनएम, 990 किग्रा.
इस सूची में जो पहली कार है वह वास्तव में बहुत ही पसंद की गयी थी परन्तु पीएएल की ख़राब सेवा और ख़राब डीलर नेटवर्क के कारण भारत में प्यूजो 309 बहुत ही कम समय के लिए चली। यह बहुत दुःख की बात थी क्योंकि यह कार भारत की स्थितियों के अनुरूप थी परन्तु अच्छी कारों को भी लगातार स्पेयर्स की आवश्यकता पड़ती है। हास्यास्पद सच: टैकोमीटर की अनुपस्थिति के कारण 309 में इंजन के आरपीएम की गणना करने के लिए एनालॉग घड़ी के काँटों का उपयोग करना पड़ता था।
2. मारुति बलेनो अल्टुरा: 1999–2007
मूलभूत विशेषताएं: पेट्रोल-1.6-लीटर, 94 बीएचपी, 130 एनएम, 1020 किग्रा.
मारुति बलेनो अल्टुरा उस समय देश में एक संपत्ति के समान समझी जाती थी परन्तु इससे बिक्री के आंकड़ों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि भारतीय बाज़ार को किसी कारणवश इसकी बनावट पसंद नहीं आई। अत: बलेनो अल्टुरा बहुत बड़ी तथा व्यावहारिक होने के बावजूद यह बाज़ार में असफल रही। संयोग से बलेनो अल्टुरा सुजुकी की पहली स्टेशन वैगन थी।
3. ओपल वेक्ट्रा: 2003–2005
मूलभूत विशेषताएं: पेट्रोल-2.2-लीटर, 146 बीएचपी, 203 एनएम
यह देखकर बहुत बुरा लगता है कि ओपल वेक्ट्रा भारत में असफल हो गयी क्योंकि यह दिखने में बहुत शानदार थी तथा इसकी बैठी हुई और चौड़ी मुद्रा सड़क पर उपस्थिति दर्शाती थी। जीएम ने वेक्ट्रा को सीबीयू के द्वारा बेचा तथा जिसके परिणामस्वरूप कार की कीमत बहुत अधिक बढ़ गयी। इसका मेंटनेंस और ईंधन की खपत भी बहुत महंगी पड़ती थी, अत: यह दो वर्ष से अधिक समय तक नहीं चल पाई।
4. शेवरले एसआरवी: 2006–2009
मूलभूत विशेषताएं: पेट्रोल-1.6-लीटर (टर्बोचार्ज्ड), 100 बीएचपी, 140 एनएम
शेवरले एसआरवी एक अन्य रोचक कार थी जो भारत में अपनी उपस्थिति दर्शाने में असफल रही, केवल इसलिए क्योंकि यह उस समय की देश की एकमात्र हैचबैक कार थी जिसमें 100 बीएचपी का इंजन लगा हुआ था। हालाँकि इसकी कीमत ड्राइविंग के प्रति उत्साही लोगों की पहुँच से बाहर थी जिसके कारण होंडा सिटी, ह्युंडई वर्ना तथा फोर्ड फिएस्टा जैसी गाड़ियों के लिए संभावित खतरा कम हो गया। शेवरले 12.9 सेकंड्स में 0 से 100 किमी/घंटा की गति पकड़ सकती थी।
5. फोर्ड फ्यूज़न: 2006–2010
मूलभूत विशेषताएं: पेट्रोल-1.6-लीटर, 101 बीएचपी, 146 एनएम; डीजल-1.4-लीटर, 68 बीएचपी, 160 एनएम
फोर्ड फ्यूजन को फिएस्टा के प्लेटफॉर्म पर उतारा गया था परन्तु इसकी एस्टेट और एमपीवी शैली इस कार को एक अनोखा लुक देती थी। निश्चित रूप से यह अद्वितीय थी, परन्तु कितनी आकर्षक? भारतीय उपभोक्ताओं के अनुसार बहुत अधिक नहीं, क्योंकि अच्छी ड्राइव, 200 एमएम का ग्राउंड क्लियरेंस, अच्छी तरह सुसज्जित तथा सुरक्षा सुविधाओं का एक अच्छा स्तर होने के बाद भी फोर्ड इंडिया फ्यूज़न की अधिक बिक्री नहीं कर पाई।
6. टाटा सूमो ग्रांडे /टाटा मोवस: 2008–वर्तमान तक
मूलभूत विशेषताएं: डीजल:-2.2-लीटर, 118 बीएचपी, 250 एनएम
टाटा मोवस निश्चित रूप से टाटा सूमो ग्रांडे का ही दूसरा रूप थी, जिसका निर्माण टाटा मोटर्स ने ग्रांडे की निराशाजनक बिक्री को बढ़ाने के लिए किया था। भारतीय ऑटोमोबाइल उपभोक्ता शैली के प्रति बहुत सजग होता है तथा इस खंड में मोवस अपने सौम्य और बक्सेनुमा आकार के कारण असफल हो गयी। हालाँकि यह कार एक वाहन की तरह काम करने में सक्षम थी, हालाँकि यह एक बड़े वाहन के रूप में कार्यात्मक ढंग से सक्षम थी, मोवस में इस बात की कमी थी।
7.स्कोडा फाबिया: 2008–2013
मूलभूत विशेषताएं: पेट्रोल-1.2-लीटर/1.4-लीटर, 75 बीएचपी/85 बीएचपी, 110 एनएम/132 एनएम; डीजल-1.4-लीटर, 68 बीएचपी, 155 एनएम
एक और अच्छी कार असफल हो गयी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चेक निर्माता कि लिए स्कोडा फाबिया एक सफल मॉडल था परन्तु भारत में इसकी अधिक बिक्री नहीं हो पाई। स्कोडा की स्वयं को लक्ज़री कार निर्माता के रूप में स्थापित करने के इस नीति के कारण ग्राहकों ने बिक्री के बाद बहुत अधिक अच्छी सर्विस की अपेक्षा की क्योंकि इसकी कीमत बहुत अधिक थी। हालाँकि ऐसा नहीं हुआ और ठोस रूप से निर्मित फाबिया के दिन जल्दी ही ख़त्म हो गए। स्कोडा इंडिया को प्रति कार रूपये 1.5 लाख का नुकसान हुआ।
8. सुज़ुकी किजासी: 2011–2014
मूलभूत विशेषताएं: पेट्रोल-2.4-लीटर, 175 बीएचपी, 230 एनएम, 1460 किग्रा.
किजासी के द्वारा मारुति ने देश में सीडान का पहला (और संभवत: अंतिम) सेगमेंट निकालने का प्रयास किया। परन्तु यह प्रारंभ से ही सफल नहीं हो पाई क्योंकि भारतीय ग्राहक बाज़ार में कंपनी की बड़े पैमाने पर छवि को देखते हुए इसके लिए अधिक मूल्य देने को तैयार नहीं था। इसके अलावा डीजल इंजन के विकल्प की अनुपस्थिति और अधिक मूल्य ने इसकी बिक्री को कम कर दिया हालाँकि यह कंपनी की सबसे अधिक सुन्दर दिखने वाली कार थी।
9. महिन्द्रा क्वांटो: 2012–वर्तमान तक
मूलभूत विशेषताएं: डीजल-1.5 लीटर, 100 बीएचपी, 240 एनएम, 1640 किग्रा.
महिन्द्रा के जो दो उत्पाद असफल रहे उस सूची में पहले स्थान पर महिन्द्रा क्वांटो आती है। यह महिन्द्रा जायलो का ही परिवर्तित कॉम्पेक्ट रूप थी। क्वांटो देखने में बेढंगी थी विशेष रूप से इसका पिछला भाग कटा हुआ लगता था। हालाँकि 100 बीएचपी होने के बावजूद बहुत अधिक वज़न होने के कारण यह उतनी आकर्षक नहीं थी। ऐसी खबर है कि भविष्य में बिक्री को बढ़ाने के लिए महिन्द्रा एएमटी विकल्प लॉन्च करेगा।
10. महिन्द्रा वेरिटो वाईब: 2013–वर्तमान तक
मूलभूत विशेषताएं: डीजल:-1.5-लीटर, 64 बीएचपी, 160 एनएम
वेरिटो वाईब महिन्द्रा वेरिटो का छोटा वर्शन था। यह ह्युंडई एक्सेंट या होंडा अमेज के विपरीत 4 मीटर से कम लंबाई वाली श्रेणी में होने के बावजूद यह एक हैच कार थी। कार के लॉन्च होने के बाद से ही इसकी बिक्री बहुत कम थी, संभवत: इसलिए क्योंकि यह आपके ऑफिस डेस्क की तरह दिखती थी। जी हाँ, कार का आंतरिक भाग बहुत बड़ा था तथा यह पैसे का अछा मूल्य देती थी परन्तु ऐसा दिखता है कि भारतीय ग्राहकों के लिए यह पर्याप्त नहीं था।