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पहाड़ो का सफरनामा - तवांग मोटरसाइकिल राइडिंग अनुभव की कहानी
अरुणाचल प्रदेश अर्थात 'उगते सूरज की धरती' भारत के सबसे उत्तर-पूर्वी राज्यों में से एक है तथा देश के सबसे सुदूर स्थानों में से है।
इस प्रदेश के सबसे पश्चिमी भाग के जिले का नाम है तवांग, अपनी खूबसूरत मठों तथा अविश्वसनीय नजारें हर किसी के दिमाग में घर कर जाते है। पहाड़ों से ढका गुड़पी व चोंग-चुग्मी पर्वतमाला, तवांग चू नदी तथा तवांग वैली के खूबसूरत नजारें, यह सभी मन को आनंदित करने वाले दृश्य इस क्षेत्र की शोभा बढ़ाते है।
हम यहां रेड पांडा एडवेंचर्स द्वारा आयोजित एनचैंटिंग तवांग के तीसरे संस्करण में भाग लेने के लिए पहुंचे थे जो 9 फरवरी 2019 को शुरू हुआ तथा अगले 10 दिनों तक यह कार्यक्रम चला।
इस यात्रा में मैनें दुनिया भर से आये 5 राइडर्स को एक ऐसे सफर के लिए ज्वाइन किया जिसमें हमें देश के सबसे कठिन इलाकों में से होकर गुजरना था और गुवाहाटी से तवांग तथा फिर से तवांग से गुवाहाटी का 1350 किलोमीटर से भी अधिक का सफर तय करना था।
हम रॉयल एनफील्ड हिमालयन पर एक ऐसे सफर के इंतजार में थे जिसमें हमें जो पहाड़ो से ढकी दुनिया की सबसे ऊँची पर्वतमाला के बगल में होकर सफर तय करना था। इसने हमारे दिलों में भी एक हलचल पैदा कर दी थी।
अत्याधिक ठंड में राइडिंग में सीख काले बर्फ के टुकड़ों के रूप में आया जिसने सबसे अधिक अनुभवी राइडर को भी एक बार के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया था। साथ ही ऐसे इलाकों में ऑफ रोड पर चलाने का मौका मिलता जहां राइडर की कौशल के साथ साथ मोटरसाइकिल का भी टेस्ट हो जाता, और मैं एक ऐसे ही राइड के बारें में सोच रहा था।
मैं 9 फरवरी को असम की राजधानी गुवाहाटी में उतरा और आराम करने के लिए सीधे अपने होटल के कमरें में चला गया। मैं अब आराम कर चुका था और राइड पर जाने के लिए उत्सुक था।
पहला दिन
हमने अपनी राइड 10 फरवरी को गुवाहाटी से शुरु किया। आज के दिन के लिए हमारी मंजिल यहां से 230 किलोमीटर दूर तेन्झिनगाव था।
शुरु में तो हमने असम की खूबसूरत हाईवे पर अपनी बाइक चलाई। लेकिन ब्रेकफास्ट के बाद जैसे ही हम निकले तो रास्तें की हालत धीरे-धीरे बदलने लगी थी। चौड़े हाईवे से निकलकर हम छोटे छोटे गाँव से गुजरती जाती हुई संकरे रास्तों पर आ गए थे जो हमें उत्तर की तरफ भूटान की बॉर्डर की और ले आये थे।
जैसे जैसे हम हिमालय की ओर आगे बढ़ते गए, वैसे वैसे इलाके भी बदलते चले गए। भैरबकुंडा के बाद रास्तें तीन दिशाओं में बंट गए थे, एक रास्ता भूटान की ओर जाता था तथा दूसरा रास्ता असम की ओर वापस जाता था।
हम अरुणाचल की ओर आगे बढ़ते रहे और राज्य में दाखिल होने के बाद कलकटंग व आंकलिंग होते हुए तेन्झिनगाव की तरह चल पड़े। जैसे जैसे हम इन खूबसूरत इलाकों की सड़कों पर चले जा रहे थे वैसे ही नजारें लगातार बदलते जा रहे थे, जो कि बेहद खूबसूरत थे।
जल्द ही हम तेन्झिनगाव पहुंच गए जहां हम आज की रात बिताने वाले थे। पारा बहुत कम हो चुका था और मैं इसके लिए तैयार नहीं था। चाहे कुछ भी पहन लूंया ओढ़ लूं, कोई फर्क नहीं पड़ रहा था और यह मुझ बैंगलोर वाले लड़के के लिए बिल्कुलनया था।
रात का भोजन करने के बाद मैं आराम करने के लिए चला गया हालांकि कठकती ठंड ने बहुत परेशान कर रखा था।
दूसरा दिन
दूसरे दिन हम जल्दी उठ गए (अरुणाचल के कुछ हिस्सों में सुबह 4 बजे सूरज निकल आता है) और दिरांग के लिए निकल पड़े लेकिन उससे पहले हमारी बाइक्स में आज के लिए ईधन भरवाने के लिए शेरगांव गए।
रास्तें पर मोर्शिंग में, रेड पांडा एडवेंचर्स ने हमारे लिए एक छोटा सा ऑफ रोडिंग सेसन आयोजित किया था जहां पर करीब 30 किलोमीटर तक हमने एक बेहतरीन रास्ते पर वाहन चलाया।
इस मजेदार सेसन के बाद, हम अपने हिमालयन के साथ वापस अपने रास्ते पर आ गए और मंडला की ओर बढ़ने लगे। वहां के मददगार आम लोगों ने हमें मंडला के ऊपरी हिस्से के रास्तें पर जमे बर्फ के बारें में चेतानवी दी, जो कि एक बार फिर गिरते पारे के साथ हमारे ऊपर चढ़ने के रास्तें को और मुश्किल बना सकता था। फिर भी, हमनें उन कठिन रास्तों का सामना किया।
एक समय पर, मुझे तथा कुछ अन्य राइडर्स को भी छोटे लेकिन खतरनाक काले बर्फ के टुकड़ो का सामना करना पड़ा। हालांकि गिरने पर ज्यादा हानि नहीं हुई और हम मामूली चोट के साथ मंडला के रास्तें पर निकल पड़े।
लाल चाय के एक गरम कप के बाद, हम अपने अगले पड़ाव दिरांग की और चल पड़े जहां पर हमें आज रात बितानी थी। जहां पर हम शाम करीब 6 बजे पहुंच गए लेकिन तब तक यहां पर अंधेरा हो चुका था। रात का खाना करने के बाद तीसरे दिन के इंतजार में हम आराम करने चल दिये।
तीसरा दिन
तीसरे दिन के सफर में हमनें अरुणाचल के दिरांग से तवांग का सफर तय किया। जल्द ही ब्रेकफास्ट करने के बाद हम न्यूकमाडोंग युद्ध स्मारक की और चल पड़े, यह 1962 भारत-चीन के सबसे प्रसिद्ध जंग के मैदान की याद दिलाता है।
यह स्मारक 1.5 एकड़ के मैदान पर स्थित है जहां प्रमुख स्मारक लिकल बुद्ध परंपराओं के मुताबिक 25 फुट ऊंचे स्तूप के रूप में बनाया गया है। स्मारक में तीन स्तर बनाये गए है तथा कई शंकुधर पेड़ अंकित किये गए है। शौर्य और सम्मान को सही आदर देने के लिए, स्मारक में हमारें शहीदों के नाम लिखे गए है।
स्मारक पर शहीदों को सत्कार देने के बाद हम कॉफी के लिए बैसाखी आर्मी कैंप की और निकल पड़े। आर्मी कैंप में आम लोगों को भी CSD कैंटीन से आर्मी के सामान (जैसे जैकेट, जूते, टी शर्ट आदि) की इजाजत दी जाती है।
कैंप से निकलने के बाद काफी रिफ्रेश महसूस कर रहे थे। इसके बाद हम सेला टॉप की और चढ़ने लगे जो कि तवांग जिले का प्रवेश द्वार है। सेला टॉप से नजारा देखने लायक है, खासकर जब झील पूरी तरह बर्फ से जमी हुई हो।
जैसे जैसे दिन ढल रहा था वैसे वैसे तापमान भी गिर रहा था और हम तवांग की और बढ़ते चले गए। जसवंतगढ़ (इस जगह का नाम राइफलमैन जसवंत सिंह रावत के नाम रखा गया है जिन्हें नूरानांग युद्ध में अपनी वीरता के कारण महावीर चक्र से नवाजा गया था) को पार करने के बाद एक बार फिर हमें काले बर्फ के टुकड़ों का सामना करना पड़ा और इस बार यह पूरी सड़क पर बिखरे पड़े थे।
सड़क के इस हिस्से को पार करने में काफी समय लगा तथा यह थका देने वाला भी था। जल्द ही हमें रास्ते में ताजा बर्फ मिले और काले बर्फ से छुटकारा मिल गया।
जसवंतगढ़ के बाद रास्तें का काम चलने की वजह से हमें थोड़ा धीरे चलना पड़ा और दिन जल्द ही ढल रहा था। जब हम तवांग पहुंचे, तब तक सूरज ढल चुका था।
चौथा दिन
हमारे सफर का चौथा दिन आराम करने के लिए था और इसका मौके का फायदा उठाते हुए हम तवांग शहर को एक्सप्लोर करने लगे, इस वक्त क्षेत्र में लोसार (तिब्बती नया साल) मनाया जा रहा था। हम सर्किट हॉउस के पास स्थित बुद्धा मूर्ति सहित तवांग के आस पास की कुछ जगहों को घूम आये।
हालांकि दिन की सबसे खास जगह तवांग मठ था, जो कि ल्हासा के बाद विश्व का सबसे बड़ा मठ है। तवांग मठ का निर्माण वर्ष 1860-61 में किया गया था जिसे तिब्बती में गडेन नमग्याल ल्हासते (चांदनी रात में दिव्य स्वर्ग) के नाम से जाना जाता है। इसका उपयोग वर्तमान दलाई लामा आराम करने के लिए करते थे, चीन के इस क्षेत्र में आक्रमण के बाद 1959 में वह यह जगह छोड़कर चले गए थे।
पांचवा दिन
एक दिन आराम के करने के बाद हम फिर अरुणाचल की खूबसूरत इलाकों में चल पड़े। हमारा पहला पड़ाव पंकंग तेंग त्सो लेक था, राज्य की एक और खूबसूरत जगह जहां अविश्वसनीय नजारों की कोई कमी नहीं थी। लेक के सामने बर्फ से ढके हुए हिमालय के पर्वत के नजारे भारत के सबसे उत्तर-पूर्वी राज्य के खूबसूरती को बयां कर रहे थे।
लेक के बगल में गमराला फायरिंग रेंज था। गमराला बहरत की सबसे ऊंची फायरिंग रेंज है जो 4200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, इसक उपयोग आर्मी के द्वारा फायर प्रशिक्षण के लिया किया जाता है।
फायरिंग रेंज के बाद हम बम ला पास की तरफ बढे लेकिन भारी बर्फ के कारण हमें तवांग की और वापस लौटना पड़ा, क्योंकि जिन वाहनों के पहियों में चेन लगे हुए थे उन्हें ही आगे बढ़ने की इजाजत थी।
छठवां दिन
छठवें दिन के अपने सफर में हम तवांग को पर करते हुए बोमडिला की तरफ चल पड़े। हालांकि दिन योजना अनुसार नहीं गया क्योंकि हमारे बैकअप वाहन को एक दुर्घटना का सामना करना पड़ा लेकिन किसी को भी चोट नहीं आयी। पास में ही खड़े सेना के जवान हमारे बचाव के लिए आगे आये और हमारी मदद की, जब तक हम अपने बैकअप वाहन का इंतजार करते रहे।
रेड पांडा एडवेंचर्स ने जल्द ही एक दूसरे वाहन का इंतजाम कर दिया लेकिन फिर भी हमें अपने उस दिन के सफर को छोटा करना पड़ा और दिन का अंत दिरांग में करना पड़ा। दिरांग टाक का सफर मेरे लिए काफी मुश्किल भरा रहा, क्योंकि मैंने रुककर मदद करने का निर्णय लिया था जिसका मतलब था कि होटल पहुँचते तक सूरज ढल चुका होगा।
सातवां दिन
अरुणाचल में सफर का यह हमारा आखिरी दिन था जिसमें हमने दिरांग से तेन्झिनगाव तक का सफर तय किया। रूपा में ट्रांस हिमालयन हाईवे पर जाने से पहले जल्द ही हम बोमडिला पहुंच गए। यह हमारे राइडिंग का आखिरी दिन था इसलिए हमने खूबसूरत नजारों का आनंद लिया और रात तेन्झिनगाव (यहां अभी भी उतनी ही ठंड थी) में बिताया।
आठवां दिन
हमनें आखिकार अरुणाचल प्रदेश को अलविदा कहा और असम में प्रवेश किया, एक बार फिर से मौसम बदलने लगा था। तापमान धीरे धीरे बढ़ रहा था।
हमारी रात का पड़ाव कांजीरंगा राष्ट्रीय पार्क था। यह अभ्यारण्य एक वर्ल्ड हेरिटेज साइट है जिसमें दुनिया के कुल एक सींग वाले गैंडा (rhinocerose) की दो तिहाई जनसंख्या रहती है। 20 तथा 40 किमी/घंटा की स्पीड लिमिट की वजह से हम अपने होटल शाम 6 बजे के बाद पहुँच पाएं।
नौवां दिन
नौवें दिन हम राइडिंग से दूर रहे। रेड पांडा एडवेंचर ने हमारे लिए काजीरंगा राष्ट्रीय पार्क में एक सफारी का इंतजाम कर दिया था। वनस्पतियों तथा वन्यजीवों ने हमारा दिन यादगार बना दिया था।
दसवां दिन
दसवें दिन हम काजीरंगा के घने जंगलों से निकलकर गुवाहाटी की ओर निकल पड़े। यह 200 किलोमीटर का सफर सबसे शांत सफर था और जैसा कि मुझे मेरे सफर के बारें में याद आता है वह असल दुनिया को और करीब ले आया था।
दसवें दिन हम काजीरंगा के घने जंगलों से निकलकर गुवाहाटी की ओर निकल पड़े। यह 200 किलोमीटर का सफर सबसे शांत सफर था और जैसा कि मुझे मेरे सफर के बारें में याद आता है वह असल दुनिया को और करीब ले आया था।
हमारे आखिरी दिन के होटल में कुछ सबसे सुंदर कुत्ते थे जिन्होंने मेरे उदास मन को बहला दिया था।
शहरी जंगल जिसे मैं घर कहता हूं के आखिरी फ्लाइट पर मैं अरुणाचल प्रदेश के खूबसूरत नजारों व आवाजों के बारें में सोच रहा था।
राइड के बारें में सोचने पर लगता है कि फिर से वहां वापस चला जाऊं और उन जगहों को फिर से घूम आऊं इसलिये जो भी अरुणाचल प्रदेश, खासकर तवांग के बेहतरीन धरती को एक्सप्लोर करना चाहता है उन्हें मैं यह करने की सिफारिश जरुर करता हूं।
रेड पांडा एडवेंचर्स के बारें में जानकारी
रेड पांडा एडवेंचर्स भारत के उत्तर-पूर्वी इलाके के कुछ ही स्थापित और प्रसिद्ध मोटरसाइकिल टूर ऑपरेटर्स में से एक है और यह लोकल लोगों के साथ साथ अंतर्राष्ट्रीय सैलानियों को भी यह सुविधाएं प्रदान कराता है।
रेड पांडा एडवेंचर्स को बालाजी देवनाथन तथा मार्टिन अल्वा ने स्थापित किया था तथा दोनों की मुलाकात 2011 में हिमालयन राइड के दौरान हुई थी।
रेड पांडा एडवेंचर्स की टीम में उत्तर-पूर्व के लोग शामिल है जो इन इलाकों को अच्छी तरीकों से जानते है, जिससे वह बेहतर प्लानिंग और लोकल भाषा की मदद से राइड अच्छे तरीके से आयोजित कर पाते है।
'एनचेंटिंग तवांग' राइड की कीमत क्या है? और मुझे अपने पैसों के बदले में क्या मिलेगा?
रेड पांडा एडवेंचर्स एनचेंटिंग तवांग राइड के लिए 65,800 रुपयें लेता है। यह कीमत दो शेयरिंग (2 राइडर्स, 1 रूम) के आधार पर है।
इस पैकेज में यह सब चीजें शामिल है:
•
एयरपोर्ट
पिकअप
व
ड्राप
•
होटल
में
ठहरने
की
व्यवस्था
•
मोटरसाइकिल
रेंटल
फीस
•
टूर
गाइड
•
फ्यूल
•
सभी
लोकल
ट्रांसपोर्टेशन
•
ब्रेकफास्ट,
लंच,
डिनर
•
लोकल
परमिट
•
मोटरसाइकिल
इंश्योरेंस*
पैकेज के खर्च में यह सब नहीं शामिल है:
•
अंतर्राष्ट्रीय
एयरफेयर
•
वीसा
चार्ज
•
टिप्स
•
रूम
सर्विस
फीस
•
एल्कोहल
•
अतिरिक्त
खाना
•
पर्सनल
इंश्योरेंस
•
किसी
भी
लोकल
प्रॉपर्टी
को
नुकसान
पहुंचाना
मौसम किस तरह का होता है?
एक ही शब्द में जवाब देना हो तो ठंड। हम गुजारिश करते है कि आप अपने आपको परतों में ढक ले। सूरज बहुत जल्दी उग जाता है (कुछ क्षेत्र में तो सुबह 4:00 बजे) और शाम को जल्द ही अंधेरा होने लगता है।
खाना कैसा है?
अरुणाचल प्रदेश में खाना अधिकतर मांसाहारी है तथा मोमोस, थुक्पा, नूडल्स, चावल तथा शाप्ता जैसे कहने की सामग्री आसानी से उपलब्ध है। अगर आप शाकाहारी है तो आपके लिए भी विकल्प मौजूद है।
घूमने की जगह
•
सेला
पास
•
तवांग
मठ
•
माधुरी
लेक
•
तवांग
वार
मेमोरियल
•
पैंकांग
तेंग
सो
लेक
•
जसवंतगढ़
मुझे कौन सा मोटरसाइकिल चलाने मिलेगा?
रेड पांडा एडवेंचर्स अपने राइडर्स को एनचेंटिंग तवांग राइड के लिए रॉयल एनफील्ड हिमालयन उपलब्ध कराता है।
हिमालयन एक एंट्री लेवल एडवेंचर टूर मोटरसाइकिल है जिसमें 411cc, सिंगल सिलेंडर इंजन लगाया गया है जो 24.5 बीएचपी का पॉवर तथा 32 एनएम का टॉर्क प्रदान करता है।
इसमें 5 स्पीड गियबॉक्स लगाया गया है। हिमालयन में फ्रंट में 19 इंच के स्पोक व्हील व रियर में 17 इंच के स्पोक व्हील दिए गए है। पहियों में CEAT Gripp XL all-terrain टायर्स लगाए गए है।
रेड पांडा एडवेंचर्स पर निष्कर्ष
रेड पांडा एडवेंचर्स बहुत फ्रेंडली व अनुभवी राइडर्स है। अगर आप सिर्फ कुछ लोगों के साथ एक प्रीमियम एक्सपेरिमेंटल मोटरसाइकिल टूर/एडवेंचर की तलाश कर रहे है जिसका आप अच्छे से मजा ले पाएं तो रेड पांडा एडवेंचर्स से जरुर संपर्क करें। उनके राइड्स आपको 'escape the ordinary' का अहसास कराएंगे और आपकी पूरे कीमत की वसूली होगी।
Written By: Jobo Kuruvilla
Photography: Rahul Jaswal, Hetal Trivedi, Girish Shet, Pradeep Warrier and Red Panda Adventures (Balaji Devanathan)