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तस्वीरों में देखिये अंतरिक्ष के सीने पर दौड़ने वाली स्पेश कारें
स्पेश यानी की अंतरिक्ष, असंख्य संभावनाओं से भरा पड़ा वो पिटारा जिसकी गुत्थीयां सुलुझाने में हमने न जानें कितने वर्षो लगा दियें। लेकिन फिर भी हमें हर पल ऐसा लगता है कि, अभी भी बहुत कुछ बाकी है जो हमसे छूट रहा है। अपने इसी जिज्ञासू प्रवृति के चलते इंसान हर बार अंतरिक्ष में अपनी पैठ बनाने में लगा रहता है।
अंतरिक्ष के मिशन जितने महत्वपूर्ण और नये राज खोलने वाले होते हैं, उतने ही खतरनाक भी। क्योंकि आपको एक ऐसे रास्ते का चुनाव करना होता है जहां पर कभी कोई इंसान नहीं गया होता है। लेकिन विज्ञान के इस युग को हर अंजान राहों पर चलने का हुनर बखूबी मालूम है। जैसा कि आज का दिन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिये बेहद ही खास है। आज इसरो मंगल ग्रह पर अपने नये मार्स ऑर्बिटर मिशन की शुरूआत किया है।
आज
हम
आपके
लिये
कुछ
खास
लेकर
आयें
हैं।
क्या
आपने
कभी
अंतरिक्ष
पर
प्रयोग
की
जाने
वाली
कारों
के
बारें
में
कल्पना
की
है।
शायद
ये
बातें
आपको
हैरान
कर
रही
होंगी,
लेकिन
हम
आज
आपको
उन्ही
से
रूबरू
करायेंगे।
तो
आइये
तस्वीरों
में
देखते
हैं
कुछ
ऐसी
कारों
को
जिनका
प्रयोग
सड़क
पर
नहीं
बल्कि
अंतरिक्ष
में
किया
जाता
है।
आगे नेक्स्ट स्लाईड पर क्लिक करें और तस्वीरों में देखें कुछ बेहतरीन स्पेश कार्स→
आपोलो लूनर रोविंग व्हीकल
नासा ने सबसे पहली बार सन 1971 में अपोलो मिशन के तहत मानव रहित यान चंद्रमा पर भेजा था। उस मिशन के तहत सबसे पहली चंद्रमा पर आपोलो लूनर रोविंग व्हीकल का प्रयोग किया गया था। इतना ही नहीं इसी वाहन का प्रयोग अगले तीन और अपोलो मिशन 15,16 और 17 में भी किया गया था। इसमें ऐसी दो नॉन रिर्चाजेबल जिंक बैटरी का प्रयोग किया गया था, जो कि कार के हर पहियों को लगभग एक चौथाई हॉर्स पॉवर की शक्ति प्रदान करते थें।
आपोलो लूनर रोविंग व्हीकल
इतना ही नहीं इस कार ने हर मिशन में बेहतर प्रदर्शन किया और लगभग चंद्रमा के सतह पर 30 किलोमीटर तक का विचरण किया। नासा द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसा इन चार आपोलो लूनर रोविंग व्हीकल की कीमत लगभग 38 मीलियन डॉलर थी, यानी की आज के समय में इनकी कीमत लगभग 200 मीलियन डॉलर के करीब होगी।
स्पेश एक्सप्लोरेशन व्हीकल
जब आप लुनर व्हीकल को,,, अंतरिक्ष की सतह पर उतारते हैं, तो आप इसे बहुत देर के लिये नहीं चला सकते हैं। लेकिन अंतरिक्ष में महज कुछ देर की सैर में आप कुछ भी हासिल नहीं कर सकते हैँ। ऐसी दशा को ध्यान में रखकर इस स्पेश एक्सप्लोरेशन व्हीकल को डिजाइन किया गया था। जो कि अंतरिक्ष में लंबे समय तक चल सकता है।
स्पेश एक्सप्लोरेशन व्हीकल
इतना ही नहीं, स्पेश एक्सप्लोरेशन व्हीकल में एक फायदा ये भी है कि इसके भीतर बैठने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेश सूट आदि पहनने की कोई जरूरत नहीं है। इसके भीतर बनाया गया केबिन वो सारी सुविधायें जैसे आक्सिजन आदि की पूर्ति करता है। इस अंतरिक्ष कार की कीमत लगभग 153 मीलियन डॉलर है, और इसे सन 2010 में तैयार किया गया था।
मार्स पाथ फाईंडर
मार्स पाथ फाइंडर, जैसा कि आपको इसका नाम सुनकर ही अंदाजा हो गया होगा कि, इसका निर्माण मंगल ग्रह के मिशन को ध्यान में रखकर किया गया होगा। इसका निर्माण नासा ने सन 1970 में किया था। इसकी खासियत ये है कि, ये कम कीमत, तेज और बेहतर स्पेश कार है। इस कार में कुल 6 पहियों का प्रयोग किया गया है। सन 1997 में इसे पहली बार मंगल ग्रह पर भेजा गया था, जहां से इसने वहां की मिट्टी आस-पास के वातावरण आदि की लगभग हजारों तस्वीरें भेजी थीं। जो कि अंतरिक्ष विज्ञान के लिये काफी महत्वपूर्ण साबित हुई। इसकी कीमत लगभग 250 मीलियन डॉलर के करीब है।
मार्स एक्सप्लोरेशन रोवर्स
मंगल ग्रह की और अधिक जानकारी के लिये, मार्स एक्सप्लोरेशन रोवर्स नामक व्हीकल का निर्माण किया गया था। सन 2004 जनवरी में पहली बार मंगल ग्रह पर मार्स एक्सप्लोरेशन रोवर्स को भेजा गया। नासा के अनुसार इसने दो रोबोटिक वाहनों को शामिल किया गया था, जो कि मंगल ग्रह के दो अलग-अलग दिशाओं में भेजे गयें। इस वाहन ने लगभग 21 मील की दूरी तय की और मंगल ग्रह की कई तस्वीरें भेजी। लेकिन दुर्भागयवश ये मंगल ग्रह पर ही किसी मिट्टी के दलदल में फंस गया और सुचनायें मिलनी बंद हो गई। मार्स एक्सप्लोरेशन रोवर्स के निर्माण, लॉन्चिंग, लैंडिग सभी को मिलाकर लगभग 820 मीलियन डॉलर खर्च किया गया था।
क्यूरोसिटी रोवर
अंतरिक्ष में भेजा जाने वाला अभी तक का ये सबसे बड़ा वाहन है। जी हां, 9 फिट चौड़ा, 7 फिट लंबा ये स्पेश रोबोटिक कार किसी बड़ी एसयूवी से भी बड़ा है। इसका वजन लगभग 2000 पॉड है। इस वाहन में बेहतरीन कैमरों का प्रयोग किया गया है, जो कि पूरे मंगल ग्रह को खंगालने के लिये हर पल चौकन्ने रहते हैं। इस वाहन से अंतरिक्ष की दुनिया को काफी उम्मीदें हैं। इसकी लागत लगभग 2.5 बीलियन डॉलर है। इस क्यूरोसिटी रोवर की विशेषताओं का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि, ये न्यूक्लीयर पॉवर से संचालित होता है। इसके अलावा इस पर एक प्रयोगशाला में प्रयोग की जाने वाली आधुनिक यंत्रों को स्थापित किया गया है। वहीं इसमें एक ड्रील मशीन का भी प्रयोग किया गया है, जो कि जरूरत पड़ने पर ग्रह के सतह को खोद भी सकता है।