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कलाम साहब के बारें कुछ खास, जब मिसाइल मैन ने उड़ाया सुखोई
‘मिसाइल मैन' के रूप में ख्याती प्राप्त देश के 11 वें राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम की अचानक मौत ने समूचे देश को झंकझोर कर रख दिया है। विज्ञान के क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद 'जनता के राष्ट्रपति' के रूप में लोगों के दिलों में कलाम साहब ने अपनी खास जगह बनाई।
आज डा. कलाम साहब हमारे बीच नहीं हैं। आईआईएम शिलांग में एक लेक्चर के दौरान उन्हें हार्ट अटैक आया और वो मंच पर गिर गए। कलाम साहब को फौरन अस्पताल ले जाया गया लेकिन बचाया नहीं जा सका। एपीजे अब्दुल कलाम की उम्र 83 साल थी।
कलाम साहब का दुनिया से चले जाना देश के लिये एक बहुत बड़ी क्षती है। खैर उनकी मौत ने जहां हमें दुखी किया वहीं उनका जीवन हमारे लिये किसी मार्गदर्शन से कम नहीं रहा। डा़ कलाम को विमानों से खास लगाव था, उनके वैज्ञानिक बनने के पीछे की प्रेरणा भी एक विमान ही थी। उनके उन्हीं अनुभवों को आज हम आपसे साझा करने जा रहे हैं।
जून,
2006
को
जब
तत्कालीन
राष्ट्रपति
अब्दुल
कलाम
ने
30
मिनट
के
लिए
लड़ाकू
वायुयान
सुखोई-30
एमकेआई
को
उड़ाया
था,
तो
उन्हें
देखने
वालों
की
निगाहें
बर्बश
आसमान
में
ठिठक
गई
थीं।
शायद
दुनिया
ने
पहली
बार
भारत
के
राष्ट्रपति
और
मिसाइल
मैन
के
हाथों
में
विमान
की
स्टीयरिंग
देखी
थी।
उस
समय
उनके
साथ
सहयोगी
पायलट
विंग
कमांडर
अजय
राठौर
थे।
आइये
तस्वीरों
के
साथ
देखते
हैं
कलाम
साहब
की
उस
अद्भभुत
उड़ान
को-
आगे नेक्स्ट बटन पर क्लिक करें और देखें, जब मिसाइल मैन के हाथों आई थी, सुखोई विमान की कमान।
बचपन से ही अब्दुल कलाम का सपना था कि, वो एक दिन फाइटर प्लेन उड़ाये। लंबे समय विज्ञान के क्षेत्र में देश की सेवा करने के बाद सन 2006 में उन्हें ये मौका मिला जब उन्होनें लगभग 30 मिनट तक हवा में अपने इस सपने को जिया था।
ये तस्वीर उस समय की है, जब वो प्लेन में सफर करने के लिये तैयार हो चुके थें। इस समय उनकी आंखों में गजब का उत्साह नजर आ रहा था।
आपको बता दें कि वो देश के पहले राष्ट्रपति थें जिन्होनें फायटर प्लेन उड़ाया था, इसके साथ ही इस उम्र में फायटर प्लेन वाले पहले भारतीय भी थें।
पूणे के लोहेगांव एअर फोर्स स्टेशन से कलाम साहब ने उड़ान भरी थी, उस दौरान उनके साथ विंग कमांडर अजय राठौर मौजूद थें।
अपने इस साहसिक सफर को साझा करते हुये उन्होनें बताया कि, जब मैने लीवर को उपर और नीचे की तरफ ऑपरेट किया तो वो सबसे सुखद क्षण था।
उनकी इस यात्रा के दौरान एअरफोर्स के ही एक अफसर ने बताया कि, इस उम्र में भी अब्दुल कलाम के भीतर गजब का आत्मविश्वास था। वो एक नौजवा की तरह कॉकपिट में दाखिल हुयें। उन्हें जब मदद के लिये हाथ बढ़ाया गया तो वो खुद को हंसते हुये रोक न सके।
भारत के मिसाइल तकनीकी के पिता अब्दुल कलाम की उम्र उस समय 74 वर्ष थी।
आपको बता दें कि, सन 1958 में जब अब्दुल कलाम ने एअरफोर्स पायलट के लिये परीक्षा दी थी तब वो फेल हो गये थें। लेकिन किसे पता था एक दिन यही कलाम साहब अपने सपने को जरूर पुरा करेंगे और आसमान पर एक नई इबारत लिख देंगे।