ऐसे वाहन जिन्‍हें पुलिस तो क्‍या, कोई नहीं रोकता

चौराहे पर ट्रैफिक सिग्नल की लालबत्ती जलते ही सारी गाड़ियां रुक जाती हैं, मगर एक गाड़ी ट्रैफिक पुलिस वाले के इशारे पर भी नहीं रुकती। इतना ही नहीं, ट्रैफिक पुलिस वाला गाड़ी के खिलाफ कोई चालान भी नहीं काटता है। इसकी वजह सिर्फ इतनी है कि उस गाड़ी में किसी पार्टी का झंडा लगा होता है। यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं, यह बात आम हो चली है। आज सड़क पर चलने वाली गाड़ियों में ज्यादातर गाड़ियां ऐसी ही हैं, जो किसी न किसी पद का बैनर अपनी गाड़ियों में लगाए हुए हैं।

चाहे बात पुलिस की हो या सेना, नेता, सभासद, सचिवालय एवं प्रेस की। नंबर प्लेट पर लिखे पद को देख पुलिस वाले भी ऊंचे रसूख रखने वालों पर कार्रवाई की जहमत नहीं उठाते और कानून का उल्लघंन करने वालों को नहीं रोकते। ऐसी ही कुछ गाड़ियां, जिन पर 'उत्तर प्रदेश सचिवालय' लिखा था, के चालक से पूछा गया तो उसने बताया कि इससे पुलिस वाले गाड़ियों को कम रोकते हैं। डॉक्टर गाड़ियों में 'प्लस' चिह्न् लगाना उचित मानते हैं।

Why Are Even Cops Hesitant To Stop These Vehicles

गाड़ियों की नंबर प्लेट पर प्रेस, एडवोकेट लिखवाने का फैशन काफी पहले से चला आ रहा है। लोगों का मानना है कि ऐसा करने से 'नो पार्किंग' में भी बेझिझक गाड़ियां खड़ी की जा सकती हैं। खास बात यह कि नंबर प्लेट में फैशन और रुतबे की झलक अब लगातार बढ़ती जा रही है। अपनी हर गाड़ी पर 'जाट' लिखाने वाले लोकश कहते हैं कि इससे कुछ अलग तरह ही 'फीलिंग' आती है और सड़क पर चलते वक्त लोग आकर्षित भी होते हैं।

गौर करने वाली बात यह है कि जिन गाड़ियों में पदनाम, पार्टी का झंडा लगा हुआ है, वे वास्तविक ही हों यह जरूरी नहीं है। कई बार ऐसे झूठे मामले भी सामने आए हैं। इसके अलावा एक फैशन और तेजी पकड़े हुए है। नंबर प्लेट पर नंबर के अलावा फोटो लगाना, परिवार के किसी सदस्य का नाम लिखना, इलेक्ट्रॉनिक लाइट लगाना, स्लोगन लिखना (साईं बाबा जी, मॉम गिफ्ट, नीड सेज नो वेज, डैड गिफ्ट) जैसे कई स्लोगन आसानी से गाड़ियों में देखे जा सकते हैं।

लड़कों की अपेक्षा हालांकि लड़कियों की गाड़ियों में इस तरह के स्लोगन, नाम या तस्वीर कम मिलती हैं, लेकिन प्रतीक चिह्न् आसानी से देखे जा सकते हैं। गाड़ियों की नंबर प्लेट पर अन्य चीजों को सम्मिलित करने में नंबर का आकार निर्धारित मानक से भी छोटा होता जा रहा है, साथ ही नंबर को इतने तिरछे तरीके से लिखा जाता है कि जल्दी पढ़ा भी न जा सके। ऐसा करने के पीछे तर्क है कि इससे गाड़ी वाले का रुतबा बढ़ता है।

कुछ लोग यह भी मानते हैं कि नवयुवकों में इस तरह कि सोच ज्यादा पाई जाती है। यही वजह है कि कुछ नंबर प्लेट पर 'बैचलर' लिखा भी दिखाई पड़ता है। जहां तक टैक्सी, ट्रकों, बसों एवं टेम्पो की बात है, उसमें ज्यादातर स्लोगन का प्रयोग किया जाता है। जैसे (मेरा भारत महान, हम दो हमारे दो, बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला, जियो और जीने दो, हम सब एक हैं) इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिनके लिखे जाने का तुक समझना बहुत मुश्किल है। ऐसे में 'प्रेस' वाले स्टीकर का दुरुपयोग सबसे ज्यादा पाया जा रहा है।

प्रेस, जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, उसका गलत प्रयोग भी किया जा रहा है। गाड़ियों में झूठे तौर पर 'प्रेस' लिखवाना और लोगों के बीच में रौब जमाना एक आम बात होती जा रही है। कई बार यातायात पुलिस द्वारा ऐसे लोगों को पकड़ा भी गया है।

अफसोस की बात यह है कि अब भी कई लोग बेवजह गाड़ियों में 'प्रेस' लिखवाए घूम रहे हैं। यह कहना गलत न होगा कि यह फैशन अपराध को बढ़ावा दे रहा है।

लखनऊ में इन दिनों गाड़ियों पर चढ़ी काली फिल्म उतारने का भी अभियान चलाया जा रहा है। यातायात पुलिस के मुताबिक, कोई दिन अभी तक ऐसा नहीं गया जिसमें रौबदार लोगों ने दबाव बनाने की कोशिश नहीं की हो। इनमें सियासी दलों के नेताओं से लेकर अवैध तरीके से नीली बत्ती लगाए लोग और प्रेस वाले तक शामिल हैं।

यातायात पुलिस स्वयं मानती है कि ऐसे लोगों से निपटना कई बार मुश्किल हो जाता है। पुलिस का कहना है कि चाहे नंबर प्लेट को गलत तरीके से लगाने का मामला हो, अवैध तरीके से नीली बत्ती लगाने का मामला हो या फिर काली फिल्म लगी गाड़ियां, सभी में उचित कार्रवाई की जा रही है।

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Hindi
English summary
A common trend followed by vehicle owners (especially by members of the Press) in the Northern states of India is that of decorating them with stickers and banners, advertising their affiliation/support for political parties. Generally, this is done to boost the owners social standing. But lately criminals and anti-social elements have picked up this trend.
Story first published: Wednesday, July 3, 2013, 18:08 [IST]
 
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